Published: 27 सितंबर 2017
भारत में स्वर्ण के लिए सिंकंदर की खोज
महान सिकंदर ने ही सबसे पहले प्राचीन यूनान की व्यापारिक मार्ग प्रशस्त किया था, जिसके फलस्वरूप आगे चल कर यूनानी स्वर्ण के बदले भारतीय मसालों और बुने हुए कपड़ों की थानों का लाभकारी आदान-प्रदान आरम्भ हुआ.
दुनिया भर में भारत विशाल खजानों वाली जगह के रूप में विख्यात था. कहा जाता है कि राजा सोलोमन का धन पूर्व से आया था, उसके जहाजी बेड़े व्यापार के लिए भारत सहित दूर-दूर तक के देशों की समुद्री यात्राएं किया करते थे.
वहाँ से उसके व्यापारी जहाज इतना ज्यादा स्वर्ण और मूल्यवान रत्नों का भण्डार लेकर आते, कि “सोलोमन के शासन काल में चांदी का कोई हिसाब नहीं रखा जाता था,” जैसा कि एच.ई.मार्शल ने अपनी पुस्तक “आवर एम्पायर स्टोरी” में लिखा है.
ऐसी कहानियां प्रचलित थीं कि एक प्राचीन मूर्तिपूजक राजा और रानी भारत के खजानों से समृद्ध और सुन्दर बन गयी थी; किन्तु स्वर्ण और मसालों की धरती के बारे में अल्प जानकारी थी क्योंकि बहुत कम लोगों ने वहाँ की यात्रा की थी.
सीरिया, मिस्र और फारस से गुजरने के बाद, महान यूनानी विजेता सिकंदर ने अपनी सेना लेकर स्वर्ण की अज्ञात भूमि पर आक्रमण के लिए आगे कूच किया. उसके आदमियों ने अद्भुत चीजें देखीं, अनजाने जंगली पशुओं और सुनहरे शल्कों वाले साँपों से भरे घने जंगलों को पार किया. स्वदेश वापसी पर उनलोगों ने जंगली पशुओं, सिंहों से भी भय नहीं खाने वाले कुत्तों और स्वर्ण खोदने वाली लोमड़ी जितनी बड़ी-बड़ी चीटियों से लड़ाइयों की कहानियां सुनाईं.
लेकिन ईसा पूर्व 327 में महान सिकंदर को भारत का रास्ता मिल गया.
हालांकि उसे और उसके आदमियों को आशा थी कि वे रत्नों और जवाहरात के साथ काफी धन लेकर अपने देश लौटेंगे, किन्तु सिकंदर के भारत अभियान में बहुत ज्यादा स्वर्ण या धन नहीं मिला. फारस साम्राज्य, जहां सारा स्वर्ण शाही परिवार के अधीन होता था, में स्वर्ण की स्थिति के विपरीत भारत में स्वर्ण और धन विसरण और फैलाव था. अनेक बार धावा बोलने के बाद भी सिकंदर को खाली हाथ लौटना पडा.
भक्तिवेजन्यना स्वामी रचित इतिहास : द मिस्ट्री ऑफ़ हिज स्टोरी इज माय स्टोरी ऑफ़ हिस्ट्री के अनुसार, भारत में गंठजोड़ों को ठीक करने के प्रयास में, सिकंदर के आदमी न केवल स्वर्ण हथियाने में असफल रहे, बल्कि उलटे उसे संधि करने के लिए तक्षशिला के शासक, आम्भी को 1000 तोला स्वर्ण देना पडा.