Published: 12 सितंबर 2017
प्राचीन भारत के प्रारम्भिक स्वर्ण के सिक्के
भारत में स्वर्ण के सिक्के लागू करने का श्रेय कुषाण सम्राट श्री वीमा कैडफिसस को दिया जाता है, जिसने 100 ईस्वी में इसे जारी किया था. वीमा कनिष्क का पूर्वज था. कनिष्क कुषाण वंश का अति प्रभावशाली पांचवां राजा था और लगभग सम्पूर्ण उत्तरी भारत उसके शासन के अधीन था.
कुषाण साम्राज्य का क्षेत्र दक्षिणी उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान से लेकर वर्तमान अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान होते हुए, कश्मीर सहित अधिकाँश उत्तरी भारत और पाटलिपुत्र (वर्तमान बिहार की राजधानी, पटना) तक फैला था.
परन्तु, भारत में इन प्रारम्भिक सिक्कों की ढलाई छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास बुद्ध के काल में गंगा के मैदानी क्षेत्र के महाजनपदों में हुयी थी. लेकिन इसकी सबसे संभावित अवधि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में सिकंदर के आक्रमण के पहले की लगती है. इस काल के सिक्कों पर खुदाई की जाती थी. इनमें से अनेक सिक्कों पर साँढ़ या स्वस्तिक जैसा एक ही चिन्ह होता था.
कुषाण काल के स्वर्ण के सिक्कों पर सामान्यतः भारतीय पौराणिकता की छाप रहती थी, जिन पर अधिकांशतः शिव, बुद्ध और कार्तिकेय जैसे भारतीय देवताओं के चित्रण हुआ करते थे. अन्य चित्रों में यूनानी, मेसोपोटामियाई, और पारसी धर्म के देवी-देवताओं के चित्र होते थे, जो उस काल के अलग-अलग धर्मों के मिश्रण का प्रतीक हैं. हमें आधुनिक भारत में वैसे ही आदर्शों को अपनाने की कामना करनी चाहिए.
कनिष्क के शासन के आरम्भ से ही उसके सिक्कों पर यूनानी भाषा और लिपि और यूनानी अलौकिकता की किंवदंतियाँ लिखीं रहती थीं. परवर्ती काल के सिक्कों पर ईरानी भाषा, बैक्ट्रियन में किंवदंतियाँ लिखी रहती थीं. बाद में ईरानी देवताओं की जगह यूनानी देवताओं के चित्र गढ़े गए.
कुषाण काल के सिक्कों पर राजा को सामान्यतः दाढ़ी वाले पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है, जिसका लंबा लबादा और पाजामा टखने तक झूलता हुआ दिखता है और उसके कन्धों से ज्वालायें निकलती हैं. उसके पैरों में बड़े आकार के गोलाकार जूते हैं और वह कृपाण के समान एक लंबी तलवार तथा बर्छा से सुसज्जित है. उसे अक्सर एक छोटी वेदी पर बलि देते हुए दिखाया गया है. कुषाण काल के स्वर्ण के सिक्कों का प्रभाव परवर्ती वंशों पर भी था, जिनमे गुप्त वंश (4थी- 6ठी ईस्वी सदी) का नाम उल्लेखनीय है.