Published: 12 सितंबर 2017

क्या त्योहारों के मौसम में स्वर्ण का मूल्य बढ़ जाता है ?

भारत में त्योहारों के मौसम में स्वर्ण की मांग स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है. अनेक लोगों का मानना है कि इससे इस बहुमूल्य धातु का मूल्य भी बढ़ जाता है. क्या सचमुच मांग बढ़ने से स्वर्ण का मूल्य बढ़ जाता है? इसे समझने के लिए पहले स्वर्ण के मूल्य को प्रभावित करने वाले घटकों को जानना ज़रूरी है.

भारत स्वर्ण की अपनी ज़रुरत आयात से पूरी करता है. यहाँ स्वर्ण का उत्पादन बिलकुल नगण्य है. प्रसिद्ध कोलार स्वर्ण खदान बंद होने के बाद से स्वर्ण का अर्थपूर्ण उत्पादन ठप हो गया है. हालांकि स्वर्ण उत्खनन बढाने के प्रयास हो रहे है, लेकिन इसके नतीज़े मिलने अभी बाकी है. अगर ऐसा हुआ तो भी भारत में स्वर्ण की भारी मांग को देखते हुए, आयात से सीमित ज़रुरत ही पूरी होगी.

इस तरह, चूंकि हम स्वर्ण की अपनी लगभग सारी ज़रुरत आयात से पूरी करते हैं, स्वर्ण का मूल्य तय करने में अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों की बड़ी भूमिका होती है. स्वर्ण के इन अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में हम वर्तमान चुंगी, सीमा शुल्क, और मुद्रा दर (डॉलर की तुलना में रुपये की दर) जोड़ते हैं. चूंकि सरकारी प्रभार (सीमा शुल्क और चुंगी) बार-बार नहीं बदलता है, इसलिए खुदरा विक्रेता के यहाँ स्वर्ण का मूल्य मुख्यतः दो चीज़ों से तय होता है : मुद्रा प्रचालन और स्वर्ण का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य.

अब देखें कि ये दो घटक स्वर्ण के मूल्य को किस प्रकार प्रभावित करते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय मूल्य

स्वर्ण कारोबार वैश्विक बाजारों में होती है और भारत का आयातित स्वर्ण बाज़ार मूल्य से तय होता है, जिसे “हाज़िर कीमत” (स्पॉट प्राइस) कहते हैं. उदाहरण के लिए, मान लें कि वैश्विक बाज़ारों में स्पॉट स्वर्ण का कारोबार 1250 डॉलर प्रति औंस के भाव पर होता है. अब अगर यह ऊंचा चढ़ता है, यानी बाज़ार में मूल्य बढ़ता है, और बाकी सारे घटक ज्यों के त्यों रहते हैं, तब भारत में स्वर्ण का मूल्य चढ़ जाएगा. दूसरी ओर स्वर्ण का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य अनेक कारक तत्वों से तय होता जिनमे मुद्रास्फीति, ब्याज दर, विभिन्न मुद्राओं की तुलना डॉलर का भाव, आर्थिक आंकड़े, आदि सम्मिलित हैं. एक और महत्वपूर्ण पहलू है, भौगोलिक तनाव, जिसके कारण मूल्यों में अस्थिरता आ सकती है, लेकिन ऐसी घटनाएं हमेशा नहीं होतीं हैं. स्वर्ण के दीर्घकालिक मूल्य पर मांग एवं आपूर्ति का भी प्रभाव होता है.

मुद्रा की चाल

डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल एक दूसरा घटक है जिससे भारत में स्वर्ण के मूल्यों में घटबढ़ हो सकता है. इसे एक उदाहरण से समझें. अगर डॉलर के मुकाबले रुपया 65 पर है और धीरे-धीरे 66 पर पहुँच जाता है, और बाकी सभी प्रभावोत्पादक घटक स्थिर रहे तब भारत में स्वर्ण ज्यादा मंहगा हो जाएगा. इसी प्रकार, अगर रुपये का भाव मौजूदा 65 से 64 के स्तर पर आ जाए, तब भारत में स्वर्ण सस्ता हो जाएगा. पिछले एक वर्ष में डॉलर के मुकाबले रुपया में मजबूती आयी है और यह 66 के स्तर से 64.66 पर आ गया है, जिसके चलते स्वर्ण का मूल्य सस्ता हो गया है.

निष्कर्ष

तो, इससे स्पष्ट है कि त्यौहार के मौसम में स्वर्ण का मूल्य बढ़ जाता है, यह धारणा सही नहीं है. स्वर्ण का मूल्य अनेक घटकों पर निर्भर करता है, जैसा की ऊपर बताया गया है, और स्वर्ण के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य में उतार-चढ़ाव इनमे से सबसे बड़ा कारण है.