Published: 19 फ़रवरी 2020
उत्सव की चमक के बीच सोना
भारत रंगों-भरे त्योहारों का एक गुच्छा है। हर महीने हमारे विविधता-भरे देश के अलग-अलग हिस्सों में किसी-न-किसी त्योहार के आगमन की उत्सुकता से इंतजार रहता है। इनमें से प्रत्येक त्योहार अपने ही सांस्कृतिक महत्व, कथा और परंपरा को अपने साथ लिए आता है। लेकिन एक साझा धागा है, जो भारत के सांस्कृतिक उत्सवों के फैब्रिक में दौड़ता है — और वह है सोना।
त्योहारों में सोना
भारतीय इतिहास में सोने के प्रति आकर्षण की जड़े बहुत गहरी हैं, और इस कीमती धातु के प्रति यह प्यार हमारे उत्सव-त्यौहारों और शुभ अवसरों में अपना रास्ता निकाल लेता है। भारत में सोने की कुल मांग का 80% से ज्यादा आभूषणों के हिस्से में आता है, भारतीयों के जीवन में सोने के महत्व को समझना बहुत मुश्किल भी नहीं है।
सोना, अपने प्रति एक अलौकिक विश्वास और अनेकानेक समुदायों में कालातीत-सम्मानित पसंद के साथ, देश के गांवों में निवेश होने के अलावा, लंबे समय तक खुशी, समृद्धि और सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। लगभग हर त्योहार में सोने के प्रति गहरा लगाव देखा जाता है। आइए, कुछ ज्यादा महत्वपूर्ण त्यौहारों पर नजर डालें :
मकर संक्रान्ति :
भारत के सभी राज्यों में मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का त्यौहार नई फसल के मौसम की शुरुआत करता है। नए कपड़ों के अलावा, लोग इस अवसर पर सोना भी खरीदते हैं, इस आशा में कि साल के बाकी दिनों में भी समृद्धि और सौभाग्य बना रहेगा। इसके पीछे विश्वास यह किया जाता है कि इस त्यौहार के बाद अच्छे संयोगों की शुरुआत होती है, और इसीलिए नई शुरुआत के लिए सोने की खरीदारी को शुभ माना जाता है। स्वाभाविक ही है कि त्यौहार के दिनों में जौहरी सोने की खरीद पर आकर्षक छूट और सौदों की पेशकश करते हैं।
बिहु :
बिहू का त्यौहार पारंपरिक असमिया लोग नए साल की शुरुआत करने के लिए मनाते हैं और महिलाओं को चित्ताकर्षक सोने के आभूषण - कंगन, चूड़ियाँ और हार पहनाया जाता है। यह हिंदू सौर कैलेंडर के पहले दिन को दर्शाता है, और यह वसंत उत्सव नृत्य और संगीत की प्रतियोगिताओं के आयोजन के साथ शुरू होता है, जिसमें अक्सर पुरस्कार के रूप में सोने का पानी चढ़ा हुआ मुकुट और सोने के सिक्के भेंट किए जाते हैं।
पोंगल :
तमिलों का शुभ अवसर, पोंगल, उत्तरी राज्यों में मनाए जाने वाले मकर संक्रांति और लोहड़ी के त्यौहारों के समान है और इसे अच्छी फसल के लिए आभार प्रकट करने के रूप में मनाया जाता है। तमिल शब्द 'पोंगल' का अर्थ है 'उबलना', और इस त्यौहार की एक महत्वपूर्ण चीज है — कटे हुए अनाज का उपयोग करके चावल को उबालना। लोग फसल के मौसम की छाप छोड़ने के उद्देश्य से सोने की चीजें खरीदते हैं, अपनी आभार व्यक्त करते हैं, और समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीकों के साथ आगामी वर्ष के फसल के लिए अच्छा वर्ष होने की प्रार्थना करते हैं।
ओणम :
ओणम केरल के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। केरल एक ऐसा राज्य है, जो किसी भी अन्य से बढ़कर अपने सोने से प्यार करता है। इस भव्य त्यौहार के पीछे की कहानी एक पौराणिक कथा पर आधारित है, जिसके अनुसार केरल ने राजा महाबली के शासनकाल के दौरान स्वर्ण युग देखा था, और राज्य बहुत समृद्ध था। ओणम, मलयाली कैलेंडर के पहले महीने चिंगम को दर्शाता है, और इस विश्वास के साथ मनाया जाता है कि राजा महाबली की आत्मा इस अवसर पर केरल को समृद्धि का आशीर्वाद देती है। इस दिन, सोने के सिक्के उपहार में दिए जाते हैं, परेड और नौका दौड़ें आयोजित की जाती हैं, और महिलाएं इस शुभ त्योहार पर सोने के आभूषण पहनती हैं।
अक्षय तृतीया :
इस दिन परशुराम — भगवान विष्णु के अवतार — का जन्म हुआ था। हिंदू मान्यता के अनुसार, यह एक शुभ दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन सूर्य और चंद्रमा की चमक को सबसे चमकीला कहा जाता है। 'अक्षय' कुछ ऐसा करता है, जो कम नहीं हो सकता है, और 'तृतीया' का अर्थ है तीसरा चंद्र दिवस, और इसे किसी भी चीज़ के शुभारंभ पर चुना जाता है, जिसे कोई भी हमेशा के लिए अपने साथ रखना चाहता है, यही कारण है कि अनेकों लोग इस दिन सोना, जमीन खरीदते हैं, या व्यवसाय शुरू करते हैं, क्योंकि यह आपके धन की वृद्धि को दर्शाता है। अक्षय तृतीया के इस अवसर पर, जौहरी अपनी दुकानों को आखिरी खरीदारों के लिए देर तक खुला रखते हैं।
करवाचौथ :
उत्तरी भारत में विवाहित महिलाएं इसे मनाती हैं, यह हिंदू महीना — कार्तिक में पड़ता है। इस दिन महिलाएं अपने पति के कल्याण और लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और चंद्रमा से प्रार्थना करती हैं। उनके समर्पण के बदले में, पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को दिए जाने वाले सबसे पसंदीदा तोहफों में सोना शामिल है।
नवरात्रि :
यह उत्सव मूल रूप से गुजरात में मनाया जाता था, लेकिन अब पूरे भारत में मनाया जाता है। यह चंद्र कैलेंडर के अनुसार नौ शुभ दिनों को इंगित करता है, और देवी दुर्गा के नौ अवतारों को इन नौ दिनों में पूजा जाता है और उत्सव मनाया जाता है। इन उत्सवी दिनों में लोग अक्सर सोने के आभूषण खरीदते हैं।
इन नौ दिनों में बंगाली भी दुर्गा पूजा मनाते हैं। इस असाधारण उत्सव की प्रमुख विशेषता सोना ही है। जबकि दुर्गा पूजा का अंतिम दिन — दशमी महिषासुर पर देवी की विजय का प्रतीक है, और दशहरा नवरात्रि के उत्सव का समापन करता है, जो भगवान राम की बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक है।
धनतेरस :
परंपरागत रूप से, धनतेरस एक शुभ अवसर होता है, जो सोना खरीदने, निवेश करने और नया काम शुरू करने के लिए लोकप्रिय है, क्योंकि इसे कीमती धातुओं के रूप में किसी के भी जीवन में ‘धन’ या समृद्धि को लाने के लिए सौभाग्य का संकेत माना जाता है। इस शुभ दिन को किसी की समृद्धि और धन में वृद्धि होने के रूप में मनाया जाता है।
दिवाली :
14 साल के वनवास के बाद भगवान राम की अयोध्या वापसी के अवसर पर उनके सादर-सम्मान के रूप में इसे मनाया जाता है। एक-दूसरे को उपहार देना और परिवारिक मेल-जोल बढ़ाना इस त्यौहार की विशेषता है। यह धनतेरस के दो दिन बाद पड़ता है और रोशनी के इस पर्व पर धन की देवी लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। इस पर्व पर परिवार एक-दूसरे को सोने के सिक्कों का उपहार दिया जाता है और दोस्तों और रिश्तेदारों में मिठाइयों का आदान-प्रदान किया जाता है।
जैसाकि ये त्यौहार भारतीयों के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा होते हैं, देश में सोने की स्थिति एक खजाने की तरह की मानी जाती है। अपनी कालातीत और अपरिहार्य प्रकृति के कारण ही सोना सारे ही समुदायों की सांस्कृतिक और उत्सवी माहौल में रचा-बसा है।