Published: 20 फ़रवरी 2018
स्वर्ण में उपहार का मोल
जब उपहारों की बात आती है, विशेषकर भारत में अधिकतर लोगों के लिए स्वर्ण सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख उपहार प्रतीत होता है. यह चमकीला पीला धातु न केवल मूल्यवान उपहार, बल्कि अत्यंत पावन भी माना जाता है. असल में, भारत में लोग स्वर्ण खरीदने के लिए पावन दिनों की प्रतीक्षा करते हैं.
हिन्दू पंचांग में तो स्वर्ण खरीदने की पावन तिथियों का भी उल्लेख है, जैसा कि धनतेरस, दशहरा, ओणम, पोंगल और दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों को स्वर्ण खरीदने के लिए अत्यंत भाग्यशाली अवसर माना जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, अक्षय तृतीया को कुछ नया आरम्भ करने के लिए विशेष अवसर कहा गया है. इसी अवधि के दौरान लोग नया कारोबारी साझेदारी करते हैं, वैवाहिक समारोह संपन्न करते हैं और यात्रा पर निकलने की योजना बनाते हैं.
अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण की छडें, सिक्के और आभूषण खरीदने, पहनने और भेंट करने पर माना जाता है कि सौभाग्य कभी कम नहीं होगा. इस अवधि में बैंक और जौहरी, दोनों ही आक्रामक ढंग से स्वर्ण की बिक्री बढ़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ कीमत और छूट देते हैं. अक्षय तृतीया के समय ग्राहकों की मांग में तेजी आने की पीछे एक मान्यता यह है कि इस समय स्वर्ण खरीदने से भविष्य सुरक्षित रहता है.
कोई आश्चर्य नहीं कि सबसे महान बंधन की शुरुआत अंगूठियों के उपहार से आरम्भ होती है, स्वर्ण की अंगूठियों से. वैवाहिक अंगूठियाँ टिकाऊ सम्बन्ध का आश्वासन के रूप में परम्परागत रूप से स्वर्ण से बनी होती हैं. यह स्त्रियों के लिए कभी न भूलने वाला तथ्य है, जो अलग-अलग तरह के आभूषणों से श्रृंगार करना पसंद करतीं हैं. हमें मानना पडेगा कि ये कभी भी प्रचलन से बाहर नहीं होते हैं.
किन्तु इसके अलावा और अधिक महत्वपूर्ण यह है कि स्वर्ण को प्रतिष्ठा और धन का प्रतीक भी माना जाता. भारतीय वधुओं को विभिन्न प्रकार के आभूषण पहने हुए देखा जा सकता है. स्वर्ण आभूषणों को एक पीढ़ी से अगली पीढी तक हस्तान्तरणीय वस्तु के रूप में भी देखा जाता है. उपहार के रूप में इसका मूल्य और भी अधिक होता है, क्योंकि यह मांगलिक धातु भावी पीढ़ियों के लिए भी सहायक होता है.
यह एक बड़ा कारण हो सकता है कि स्वर्ण को आज भी एक महत्वपूर्ण उपहार के रूप में देखा जाता है, जो विशेष अवसरों पर हमारे दोस्तों और रिश्तेदारों को देने के योग्य है.