Published: 04 सितंबर 2017
स्वर्ण – एक अद्भुत धातु
देखने में सुन्दर एवं चमकीला, फिर भी अपने गुण-धर्म में उपयोगी – हमें अपनी धरती पर मानव के लिए व्यापक स्तर पर उपयुक्त स्वर्ण जैसा कोई तत्व प्रायः नहीं मिलता. स्वर्ण धरती पर उपलब्ध सबसे दुर्लभ बहुमूल्य धातुओं में से एक है. इसमें अद्भुत गुणों का भण्डार भरा है जिनका प्रयोग अन्तरिक्ष यात्रा से लेकर दन्त चिकित्सा और अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स तक विभिन्न उद्योगों में किया जाता है. तो, आइये हम इसके गुणों को थोड़ा विस्तार से समझने की कोशिश करें.
स्वर्ण एक रासायनिक तत्व है. इसका निर्माण नहीं किया जा सकता. इसका उपयोग करने के लिए हमारे पास एकमात्र प्रकृति के अलावा और कोई स्रोत उपलब्ध नहीं है. स्वर्ण का घनत्व 19.3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर होता है जो जल के घनत्व से 19 गुणा अधिक है. स्वर्ण धरती का पांचवा सबसे घनीभूत धातु है. फिर भी, अपने शुद्धतम अवस्था में यह अत्यंत कोमल होता है. इसका यह गुण मुख्यतः ठोस अवस्था में स्वर्ण अणुओं के परस्पर सम्बद्धता की क्रिया के कारण है.
स्वर्ण धरती के सभी धातुओं में सर्वाधिक लचीला भी होता है. किसी धातु का लचीलापन उसके चपटे पत्रक के आकार से तय होता है. महज एक ग्राम स्वर्ण को पीट कर 1 वर्गमीटर आकार का पत्रक बनाया जा सकता है, जो देखने में अलमुनियम फॉयल जैसा लग सकता है मगर यह स्वर्ण से बना होता है और काफी पतला होता है. इन्ही कारणों से स्वर्ण अत्यंत तन्यक भी होता है, यानी इसकी अत्यंत कम मात्रा से काफी लंबा और महीन तार बनाया जा सकता है. स्वर्ण के माइक्रोमीटर व्यास वाले महीन तारों का प्रयोग अक्सर विद्युत् परिपथ में कार्यकुशलता बढाने के लिए किया जाता है.
स्वर्ण का लचीलापन और तन्यकता इसके अन्य रासायनिक गुणों का पूरक हैं जिनमे उत्कृष्ट ताप एवं विद्युत चालक, तथा घर्षण एवं क्षरण में कमी जैसी विशिष्टताएं सम्मिलित हैं. नासा भी ताप के चालन एवं परावर्तन से अपने अन्तरिक्षयानों के विशिष्ट उपकरणों को बचाने के लिए स्वर्ण पर्ण की चपटी पत्रकों का प्रयोग करता है.
भले ही मनुष्य स्वर्ण के अनेकानेक उपयोग कर सकता है, स्वर्ण अपने आप में अधिकांशतः निष्क्रिय होता है. असल में, यह अपनी आणविक संरचना के कारण धरती का सबसे कम प्रतिक्रियाशील तत्व है. यही कारण है कि विश्व के तत्वों के संसर्ग में आने पर भी स्वर्ण प्रायः मलीन होने या जंग लगने से बचा रहता है.