Published: 27 सितंबर 2017
भारत की स्वर्ण नदी
झारखंड की राजधानी रांची के ठीक दक्षिण, छोटानागपुर के पठार से लगभग 400 किलोमीटर लम्बी स्वर्ण-रेखा की उत्पत्ति होती है, जो पश्चिम बंगाल और ओडिशा होते हुए अंत में बंगाल की खाड़ी में समा जाती है.
इस नदी का नाम सुवर्णरेखा है. भारत के विभिन्न भाषाओं में इसका शाब्दिक अर्थ “स्वर्ण की रेखा/धारी” है. अनेक वर्षों से रांची के निकट इस नदी के उद्गम स्थल पर स्थित नदी ग्राम, पिस्का में स्वर्ण की खुदाई हो रही है. आख्यानों के अनुसार, अभी भी नदी के तल में स्वर्ण के अंश उपलब्ध हैं, और अनेक लोग नदी के बालू में और किनारों पर अभी भी स्वर्णकणों की खोज करते रहते हैं.
रविन्द्रनाथ टैगोर और विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय ने अपनी अनेक रचनाओं में सुवर्णरेखा नदी का उल्लेख करके इसे अमरत्व प्रदान किया है.
ब्रिटिश इंडिया में बंगाल का हिस्सा रहे ढाका में जन्मे भारतीय फिल्म निर्माता, ऋत्विक घटक (1925-76) ने भी इस नदी से प्रेरणा ग्रहण की थी. जैसा कि अनेक लोगों का मानना है कि उनकी फिल्म, जिसका नाम भी सुवर्णरेखा है, ने भारतीय सिनेमा पर अमिट छाप छोडी. 1962 में बनी इस फिल्म को विभाजन के समय के विस्मृत भारतीयों की दुर्दशा के लिए रूपक के रूप में प्रयोग किया गया है. कथानक के चरित्रों का प्रयोग करके, इस फिल्म में आशा, निराशा और अपनी जमीन तथा आजीविका खोने के बाद इस नदी के निकट नए बसने वालों के अलगाव का चित्रण किया गया है.
आजकल इस नदी पर बनी एक पनबिजली परियोजना के अलावा इसका पानी नगरपालिका जल आपूर्ति तथा उद्योगों के लिए प्रयोग किया जा रहा है. नदी के समानांतर किनारों पर अनेक खदान और खनिज प्रसंस्करण उद्योग स्थापित हैं. असल में, देश का सबसे समृद्ध ताम्बा भण्डार ओडिशा के मयूरभंज एवं सिंहभूम जिलों में नदी घाटी की तलहटी में जमा है.
हो सकता है कि इस नदी के तल में स्वर्ण अब विद्यमान नहीं हो, तो भी इसकी स्वर्णिम आभा आज भी चमकती है.