Published: 28 अगस्त 2017
मुग़ल काल में स्वर्ण के बारे में कैसी धारणा थी ?
सिक्के प्रायः जारीकर्ता राजवंश या सरकार की धार्मिक और आर्थिक शक्ति का प्रतीक होते हैं. भारत में, सम्राटों और मध्ययुगीन शासकों द्वारा जारी सिक्कों से उनके राजनीतिक विचारों और आर्थिक सुदृढ़ता का पता चलता है. ये सिक्के साम्राज्य और सत्ता पर शासक की पकड़ का प्रतीक हुआ करते थे. इतिहासकारों के अनुसार, सिक्कों का आरम्भ पहली बार ईसा पूर्व छठी शताब्दी में हुआ था और तब से भारतीय उपमहाद्वीप में इनका व्यापक प्रयोग होता रहा है.
भारत के समृद्ध आर्थिक इतिहास में विभिन्न धनवान राजवंशों और ब्रिटिश राज के सिक्कों का उल्लेख है. भारत पर शासन करने वाले समस्त राजवंशों में मुगलों का नाम सबसे प्रसिद्ध है. ऐसा माना जाता है कि मुग़ल काल में भारतीय व्यापार और अर्थतंत्र काफी फला-फूला था.
इस अवधि में, सूरी साम्राज्य का संस्थापक और 1540 से 1545 तक मुग़ल साम्राज्य का शासक, शेर शाह सूरी ने सबसे पहले सिक्कों का प्रचलन आरम्भ किया. दाम और मोहर जैसे सिक्के जारी किये गए और इनका व्यापक प्रयोग होता था.
दाम और मोहर ताम्बे के छोटे सिक्के थे. स्वर्ण के सिक्कों और चांदी के सिक्कों को रुपिया कहा जाता था. मोहर को अशर्फी भी कहते थे, जिसका वजन लगभग 10.95 ग्राम था और उसका मान चांदी के पंद्रह रुपिया के बराबर होता था. लेकिन परवर्ती मुग़ल सम्राटों द्वारा अलग-अलग धातुओं के सिक्कों का सम्पूर्ण मौद्रिक व्यवस्था में मानकीकरण कर दिया गया.
जब प्रभावशाली मुग़ल वंश के सम्राट के रूप में अकबर का राज्याभिषेक हुआ, तब उसने सिक्को की नयी रूपरेखा तैयार करवाई जो उस समय तक के भारतीय मौद्रिक इतिहास में अपनी तरह का प्रथम आविष्कार था. इस काल में जारी किये गए समचतुर्भुजाकार सिक्कों को विशिष्ट कलाकारी से सजाया जाता था. उनके किनारों को बिन्दुओं, फूलों, चार पत्तियों वाली लताओं से सजाया जाता था और इन सिक्कों पर टंकविद्या (न्युमिज्मेटिक) लिखावट की गढ़ाई से इस्लामी आस्था का संकेत मिलता था. इसके अतिरिक्त, अकबर के चित्र वाले स्वर्ण सिक्के भी बनाये गए थे, जिसके बारे में कहा जाता है कि अकबर के पुत्र, सलीम ने बगावत के बाद संधि-स्वरुप इन सिक्को को उसे भेंट किया था.
आजकल, मुगलों द्वारा जारी स्वर्ण मोहरें सर्वाधिक वांछित संग्रहणीय वस्तु हैं, जिन्हें अक्सर काफी ऊंची कीमत पर नीलाम किया जाता है. ये रहस्यमय सिक्के भारत में विभिन्न संग्रहालयों में भी सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं.
भारत के समृद्ध आर्थिक इतिहास में विभिन्न धनवान राजवंशों और ब्रिटिश राज के सिक्कों का उल्लेख है. भारत पर शासन करने वाले समस्त राजवंशों में मुगलों का नाम सबसे प्रसिद्ध है. ऐसा माना जाता है कि मुग़ल काल में भारतीय व्यापार और अर्थतंत्र काफी फला-फूला था.
इस अवधि में, सूरी साम्राज्य का संस्थापक और 1540 से 1545 तक मुग़ल साम्राज्य का शासक, शेर शाह सूरी ने सबसे पहले सिक्कों का प्रचलन आरम्भ किया. दाम और मोहर जैसे सिक्के जारी किये गए और इनका व्यापक प्रयोग होता था.
दाम और मोहर ताम्बे के छोटे सिक्के थे. स्वर्ण के सिक्कों और चांदी के सिक्कों को रुपिया कहा जाता था. मोहर को अशर्फी भी कहते थे, जिसका वजन लगभग 10.95 ग्राम था और उसका मान चांदी के पंद्रह रुपिया के बराबर होता था. लेकिन परवर्ती मुग़ल सम्राटों द्वारा अलग-अलग धातुओं के सिक्कों का सम्पूर्ण मौद्रिक व्यवस्था में मानकीकरण कर दिया गया.
जब प्रभावशाली मुग़ल वंश के सम्राट के रूप में अकबर का राज्याभिषेक हुआ, तब उसने सिक्को की नयी रूपरेखा तैयार करवाई जो उस समय तक के भारतीय मौद्रिक इतिहास में अपनी तरह का प्रथम आविष्कार था. इस काल में जारी किये गए समचतुर्भुजाकार सिक्कों को विशिष्ट कलाकारी से सजाया जाता था. उनके किनारों को बिन्दुओं, फूलों, चार पत्तियों वाली लताओं से सजाया जाता था और इन सिक्कों पर टंकविद्या (न्युमिज्मेटिक) लिखावट की गढ़ाई से इस्लामी आस्था का संकेत मिलता था. इसके अतिरिक्त, अकबर के चित्र वाले स्वर्ण सिक्के भी बनाये गए थे, जिसके बारे में कहा जाता है कि अकबर के पुत्र, सलीम ने बगावत के बाद संधि-स्वरुप इन सिक्को को उसे भेंट किया था.
आजकल, मुगलों द्वारा जारी स्वर्ण मोहरें सर्वाधिक वांछित संग्रहणीय वस्तु हैं, जिन्हें अक्सर काफी ऊंची कीमत पर नीलाम किया जाता है. ये रहस्यमय सिक्के भारत में विभिन्न संग्रहालयों में भी सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं.