Published: 27 सितंबर 2017
दन्तचिकित्सक का स्वर्ण कितना शुद्ध होता है
दन्त चिकित्सा में स्वर्ण का प्रयोग प्राचीन मिस्त्र वासियों के समय से हो रहा है. दन्त चिकित्सा में स्वर्ण के प्रयोग के कुछ प्राचीनतम उदाहरणों में गिज़ा के विशाल पिरामिड के तहखाने में हुयी खोज शामिल है, जिसमे चबाने के दो दांतों को एक साथ रखने के लिए स्वर्ण के तार का प्रयोग पाया गया था. दांतों के लिए आज भी स्वर्ण का व्यापक प्रयोग हो रहा है. दन्त उद्योग में हर साल 80 टन स्वर्ण की खपत होती है – भले के लिए!
हमारे मुंह की प्रकृति ऐसी है कि इसमें प्रवेश करने वाला कोई पदार्थ बच नहीं पाता. आखिर, मुंह बना ही है भोजन को चबाने के लिए. भोजन को घुलाने में सहायक लार से लेकर काटने वाले नुकीले दांतों और चबाने वाले शक्तिशाली दाढ़ के दांतों तक, मुंह की संरचना तोड़ने के लिए बनी है.
तथापि, ध्यान से देखें तो स्वर्ण एक ऐसा अद्भुत धातु है जो मुंह में परोसी गयी किसी भी वस्तु को झेल सकती है. अपनी आणविक संरचना के कारण, स्वर्ण पूरी तरह से निष्क्रिय तत्व है और प्रायः किसी चीज से प्रतिक्रिया नहीं करता है. इस गुण के कारण स्वर्ण क्षरण से बचा रहता है और लम्बे समय तक चलता है. इस आदर्श गुण के कारण आप स्वर्ण से बने नकली दांत आजीवन प्रयोग कर सकते हैं.
किन्तु, मुंह के भीतर का वातावरण इतना कठिन होता है कि शुद्ध स्वर्ण, या 24 कैरट स्वर्ण सही नहीं होगा. 24 कैरट स्वर्ण अत्यंत नर्म और लचीला होता है. इसका अर्थ यह है कि इसका आकार बड़ी आसानी से टेढ़ा-मेढ़ा हो सकता है, और इस तरह नकली दांत के लिए सही नहीं होगा. इसके बदले में, दंतचिकित्सक 16 कैरट मिश्रित (या 66% शुद्ध) स्वर्ण का प्रयोग करते हैं. ऐसा करने के लिए, वे स्वर्ण के साथ चांदी, पलैडियम, ताम्बा, और/या रांगा जैसे अन्य पदार्थ मिलाते हैं. इससे उत्पन्न मिश्रित धातु अधिक कठोर होता है, और चबाने से उत्पन्न दबाव को झेल सकता है.
आज हमें दंतचिकित्सा में स्वर्ण के लाभ अच्छी तरह ज्ञात हैं, किन्तु यह ज्ञात करना कि प्राचीन मिस्त्र वासियों को भी स्वर्ण के उन्ही गुणों की जानकारी थी जैसे कि आज हमें है, या दन्त आरोपण और बंधनों में स्वर्ण के उनके प्रयोग के पीछे कोई और कारण था, अभी भी पहली बनी हुयी है.