Published: 27 सितंबर 2017
बीरबल ने कैसे सिद्ध किया कि स्वर्ण सदैव संतोष देता है
यदि आपने भारतीय इतिहास की कोई पुस्तक पढी है, तब सम्राट अकबर के शासन काल के बीरबल विलाक्शंता और बुद्धि के बारे में ज़रूर जानते होंगे. यहाँ बीरबल द्वारा स्वर्ण का मूल्य सिद्ध करने का विवरण दिया जा रहा है. सम्राट अकबर के दरबार में अनेक लोग बीरबल की बुद्धिमानी से इर्ष्या करते थे. अकबर का साला उन्हीं लोगों में से एक था. उसने अकबर से बीरबल की सेवा समाप्त करने का निवेदन किया और भरोसा दिलाया कि वह स्वयं उसका दायित्व निभा सकता था. अकबर के फैसला करने के पहले ही बीरबल पद त्याग कर चला गया. और इस तरह अकबर का साला मंत्री बन गया.
सम्राट ने अपने नए मंत्री की परीक्षा लेनी चाही. उसने मंत्री को 300 स्वर्ण मुद्राएं देते हुए आदेश दिया कि, मुद्राओं को इस प्रकार खर्च करो जिससे कि मुझे इस जन्म में 100 मुद्राएं मिलें, परलोक में 100 मुद्राएं मिलें और 100 मुद्राएं न इस लोक में, न उस लोक में मिलें.”
मंत्री भारी उलझन में फंस गया. अनेक रात उधेड़बुन में बिताने के बाद, उसकी पत्नी ने उसे बीरबल की राय लेने का सुझाव दिया. उसके पूछने पर बीरबल ने बस इतना कहा कि, “स्वर्ण मुद्राएं मुझे दे दो, बाकी मैं संभाल लूँगा.”
शहर की सडकों पर चलते हुए बीरबल की नज़र एक धनी व्यापारी पर पडी जो अपने पुत्र का वैवाहिक समारोह कर रहा था. बीरबल ने व्यापारी को 100 स्वर्ण मुद्राएं देते हुए बताया कि, सम्राट अकबर ने उसे शुभकामनाएँ और आशीर्वाद भेजा है. व्यापारी ने सम्मानित महसूस किया और सम्राट को भेंट करने के लिए बीरबल को भारी संख्या में उपहार एवं स्वर्ण मुद्राओं की एक थैली दी.
तत्पश्चात, बीरबल गरीबों की बस्ती में पहुंचा. वहाँ उसने सम्राट के नाम पर गरीबों के भोजन और वस्त्र के लिए 100 स्वर्ण मुद्राएं खर्च कीं.
अंत में, बाकी 100 स्वर्ण मुद्राएं लेकर वह शहर में आया और वहाँ संगीत-नृत्य समारोह का आयोजन किया.
अगले दिन बीरबल ने अकबर के दरबार में प्रवेश किया और घोषणा की कि उसने वह काम पूरा कर दिया है, जिसे सम्राट ने अपने साले को करने को कहा था.
सम्राट यह जानने को उत्सुक था कि बीरबल ने वह सब कैसे किया. बीरबल ने बताया, “व्यापारी को दी गयी 100 स्वर्ण मुद्राएँ आपको इसी जन्म में वापस मिल गयी हैं. गरीबों पर खर्च की गयी 100 स्वर्ण मुद्राएं, आपको परलोक में मिलेंगी. संगीत-नृत्य के लिए खर्च की गयी 100 स्वर्ण मुद्राएं, आपको यहाँ या वहाँ, कही नहीं मिलेंगी.”
अनेक अर्थों में यह आज भी लागू होता है.
- मित्रों पर खर्च गया धन किसी न किसी रूप में वापस मिल जाता है.
- परोपकार के लिए खर्च किया गया धन ईश्वर के आशीर्वाद में बदल जाता है.
- आमोद-प्रमोद पर खर्च किये गए धन से केवल क्षणिक आनंद की प्राप्ति होती है.