Published: 01 सितंबर 2017
विजयनगर का लुप्त खजाना
26 जनवरी, 1565 को विजयनगर के हिन्दू साम्राज्य का अहमदनगर, बेरार, बिदर, बीजापुर और गोलकुण्डा के इस्लामी दक्कन सल्तनतों की संयुक्त सेना से तालकोट (उत्तरी कर्नाटक में बीजापुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर) की रणभूमि में युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजयनगर के राजा राम राय की मुत्यु हो गई और उसकी सेना की घोर पराजय हुई।
परन्तु, इस युद्ध के बाद क्या हुआ\ विजयनगर पर शासन करने वाले राजवंशों के उत्तराधिकारियों द्वारा 300 वर्षों से अधिक अवधि तक संग्रहित उस कपोलकल्पित खजाने का क्या हुआ\ क्या हुआ उन कपोलकल्पित स्वर्ण भंडारों का जिसके बारे में किंवदंतियों और समकालीन परिदर्शकों द्वारा कहा जाता है कि उन्हें दिल्ली के दक्षिण सबसे समृद्ध भारतीय नगर, हम्पी की गलियों में खुलेआम बेच डाला गया?
फारस के पूर्व निवासी और उस युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी, रफीउद्दीन शि़राज़ी ने अपनी पुस्तक, ताजकिरतुल मुलुक में लिखा है कि विजेता सेना ने युद्ध के बीस दिनों के बाद विजयनगर में प्रवेश किया। पुर्तगाली इतिहासकार दिओगो दू काउतो, जिसने व्यक्तिगत रूप से विजयनगर के अंतिम दिनों का अवलोकन किया था, ने विजय के तीन दिनों के बाद मुसलमान सेनाओं के हम्पी में प्रवेश की बात लिखी है। गोलकुण्डा के एक और समकालीन व्यक्ति, फरिश्ता के अनुसार विजेताओं को हम्पी पहुँचने में 10 दिन लगे थे।
भले ही यह 3, 10, या 20 दिन रहे हों, सत्य यही है कि सल्तनत की सेना को विजयनगर की राजधानी में पहुँचने में विलंब से हिन्दू राजघराने के सदस्यों और बचे-खुचे लोगों को दम लेने का समय मिल गया।
रणभूमि से हम्पी वापस आने के बाद दिवंगत राजा राम राय का भाई, तिरुमाला राय ने राजपरिवार के जीवित बच गए सदस्यों को साथ लेकर तुरंत शहर छोड़ दिया। कहा जाता है कि उसके दस्ते में 550 हाथी के साथ-साथ अनगिनत अश्व एवं बैलगाडि़याँ थीं - सभी पर स्वर्ण के रूप में खजाने के अलावा राजा का रत्नजडि़त सिंहासन लदा था। उनका गंतव्य दक्षिणी कर्नाटक में पेनुंकोण्डा था।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का गुप्त कोष - 2011 में तिरुवनंतपुरम स्थित 16वीं सदी के श्री पùनाभस्वामी मंदिर में जिसका उद्भेदन हुआ था - मूलतः विजयनगर की धनसंपदा का हिस्सा था। समाचारों के अनुसार पता चली सामग्रियों में बहुमूल्य रत्नजडि़त साढ़े तीन फीट ऊँची विष्णु प्रतिमा सैकड़ों मूल्यवान रत्नों से जड़े शुद्ध स्वर्ण का सिंहासन, एक 18 फीट लंबी सोने की जंजीर, 500 किलोग्राम भार के स्वर्ण की एक गठरी, 36 किलोग्राम भार का सोने का एक परदा, स्वर्ण कलाकृतियाँ, कंठहार, मुकुट, हीरे, माणिक, नीलम, पन्ना, रत्न और अन्य बहुमूल्य धातुओं से बनीं अन्य वस्तुओं से भरी अनेक बोरियाँ, नीलम और पन्ना जडि़त सोने की नारियल खोल, रोमन साम्राज्य की सैकड़ों हजार स्वर्ण मुहरें और स्वाभाविक तौर पर विजयनगर युग के स्वर्ण मुहरें सम्मिलित थीं।
कहा जाता है कि दक्कन पर मुग़ल साम्राज्य का दबदबा और मराठा घुड़सवारों द्वारा लगातार हमलों के कारण विजयनगर के राजाओं के वंशजों को अपने खजाने को सुदूर दक्षिण के श्री पùनाभस्वामी की सुरक्षित अभिरक्षा में स्थानांतरित करना पड़ा।