Published: 07 जुलाई 2017
भारतीयों का गोल्ड से प्यार
भारतीयों के पास 22,000 टन से भी अधिक गोल्ड है। यह तथ्य हमें बताता है कि इस पीली धातु से उन्हें कितना प्यार है।
उम्मीद है कि इस साल भारतीय उपभोक्ताओं के बीच गोल्ड की मांग 900-1000 टन के बीच रहेगी।
हमारे देश में इनमें से गोल्ड की अधिकतर मांगे शादियों के कारण होती है। भारत में गोल्ड की मांग में ज्वेलरी की हिस्सेदारी 50% है। जहां 25 से कम उम्र वाले लोगों की जनसंख्या देश की आबादी के आधे से अधिक है, उम्मीद है कि आने वाले दशक या आगे भी, हर साल 1.5 करोड़ शादियां होंगी। ऐसे में गोल्ड की मांग कभी भी खत्म नहीं होने वाली।
शादियों में ज्वेलरी गिफ्ट करने को हमेशा से एक इन्वेस्टमेंट के रूप में भी देखा जाता रहा है। आजकल भारतीय उपभोक्ता गोल्ड बार और क्वाइन्स में भी भारी इन्वेस्टमेंट करने लगे हैं।
इसकी वजहें सामान्य हैं। बार और क्वाइन्स को ज्वेलरी के मुकाबले खरीदना और बेचना हमेशा आसान होता है। इसके अलावा इनसे भावनात्मक लगाव भी कम होता है।
अधिकांश गोल्ड क्वाइन्स और गोल्ड बार अक्षय तृतीया और धनतेरस जैसे त्योहारों में खरीदे जाते हैं। माना जाता है कि इस समय गोल्ड खरीदना व्यक्ति के लिए सौभाग्य बढ़ाने वाला होता है। दक्षिण भारत में पोंगल, ओणम और उगाडी; पूरब में दुर्गा पूजा; पश्चिम में गुडी पडवा; और उत्तर में बैशाखी तथा करवा चौथ जैसे त्योहारों में भी गोल्ड खरीदने की परंपरा है।
हम सब जानते हैं कि अपने भगवान को गोल्ड का कुछ हिस्सा गिफ्ट करना भी हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह माना जाता कि ऐसा करने से सौभाग्य और समृद्धि आती है और यह अच्छा सौभाग्यदायी भेंट है।
उदाहरण के लिए त्रिवेंद्रम का श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर अपने यहां 22 अरब डॉलर का गोल्ड मिलने से हाल ही में सुर्खियों में रहा।
यही नहीं, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी गोल्ड का इस्तेमाल हो रहा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मोबाइल फोन होगा जिसे आप इस्तेमाल करते हैं। एक ताजा रिसर्च में पाया गया कि 35-40 मोबाइल फोन में करीब 1 ग्राम गोल्ड होता है।
आधुनिक चिकित्सा में भी गोल्ड का इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए मलेरिया का पता लगाने वाले रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्टिंग किट में गोल्ड है। भारत की सदियो पुरानी चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद ने स्वर्ण भस्म जैसी दवाओं के जरिए गोल्ड में घाव भरने का गुणों को दुनिया के सामने रखा।
इसके अलावा भारत में कुछ लोग सेविंग और इन्वेस्टमेंट के लिए गोल्ड इटीएफ और गोल्ड फंड ऑफ फंड में पैसे लगाते हैं। भारत में इन फंडों में अब तक करीब 2.5 अरब डॉलर इन्वेस्ट किए जा चुके हैं। इसके अलावा सरकार की ओर से सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जैसी स्कीम लॉन्च करने के बाद उम्मीद है कि यह आंकड़ा भविष्य में और भी ऊपर जाएगा।
उम्मीद है कि इस साल भारतीय उपभोक्ताओं के बीच गोल्ड की मांग 900-1000 टन के बीच रहेगी।
हमारे देश में इनमें से गोल्ड की अधिकतर मांगे शादियों के कारण होती है। भारत में गोल्ड की मांग में ज्वेलरी की हिस्सेदारी 50% है। जहां 25 से कम उम्र वाले लोगों की जनसंख्या देश की आबादी के आधे से अधिक है, उम्मीद है कि आने वाले दशक या आगे भी, हर साल 1.5 करोड़ शादियां होंगी। ऐसे में गोल्ड की मांग कभी भी खत्म नहीं होने वाली।
शादियों में ज्वेलरी गिफ्ट करने को हमेशा से एक इन्वेस्टमेंट के रूप में भी देखा जाता रहा है। आजकल भारतीय उपभोक्ता गोल्ड बार और क्वाइन्स में भी भारी इन्वेस्टमेंट करने लगे हैं।
इसकी वजहें सामान्य हैं। बार और क्वाइन्स को ज्वेलरी के मुकाबले खरीदना और बेचना हमेशा आसान होता है। इसके अलावा इनसे भावनात्मक लगाव भी कम होता है।
अधिकांश गोल्ड क्वाइन्स और गोल्ड बार अक्षय तृतीया और धनतेरस जैसे त्योहारों में खरीदे जाते हैं। माना जाता है कि इस समय गोल्ड खरीदना व्यक्ति के लिए सौभाग्य बढ़ाने वाला होता है। दक्षिण भारत में पोंगल, ओणम और उगाडी; पूरब में दुर्गा पूजा; पश्चिम में गुडी पडवा; और उत्तर में बैशाखी तथा करवा चौथ जैसे त्योहारों में भी गोल्ड खरीदने की परंपरा है।
हम सब जानते हैं कि अपने भगवान को गोल्ड का कुछ हिस्सा गिफ्ट करना भी हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह माना जाता कि ऐसा करने से सौभाग्य और समृद्धि आती है और यह अच्छा सौभाग्यदायी भेंट है।
उदाहरण के लिए त्रिवेंद्रम का श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर अपने यहां 22 अरब डॉलर का गोल्ड मिलने से हाल ही में सुर्खियों में रहा।
यही नहीं, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी गोल्ड का इस्तेमाल हो रहा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मोबाइल फोन होगा जिसे आप इस्तेमाल करते हैं। एक ताजा रिसर्च में पाया गया कि 35-40 मोबाइल फोन में करीब 1 ग्राम गोल्ड होता है।
आधुनिक चिकित्सा में भी गोल्ड का इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए मलेरिया का पता लगाने वाले रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्टिंग किट में गोल्ड है। भारत की सदियो पुरानी चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद ने स्वर्ण भस्म जैसी दवाओं के जरिए गोल्ड में घाव भरने का गुणों को दुनिया के सामने रखा।
इसके अलावा भारत में कुछ लोग सेविंग और इन्वेस्टमेंट के लिए गोल्ड इटीएफ और गोल्ड फंड ऑफ फंड में पैसे लगाते हैं। भारत में इन फंडों में अब तक करीब 2.5 अरब डॉलर इन्वेस्ट किए जा चुके हैं। इसके अलावा सरकार की ओर से सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जैसी स्कीम लॉन्च करने के बाद उम्मीद है कि यह आंकड़ा भविष्य में और भी ऊपर जाएगा।