Published: 04 सितंबर 2017
तुगलक का असफल प्रयोग
“विचारवान पुरुष” के नाम से प्रसिद्ध, 14वीं सदी का सुलतान मुहम्मद बिन तुगलक मध्यनुगीन भारत के सबसे असाधारण सुल्तानों में से एक माना जाता है.
उसके अनेक विचार समय से आगे रहते थे, तथापि उसमे धैर्य का अभाव था और जो कोई उसकी बदलती नीतियों एवं कल्पनाओं को साकार नहीं कर पाता था, उसे कठोर दंड का भागी बनना पड़ता था.
अपने आरंभिक वर्षों में वह बिना सोचे-समझे बोरियां भर-भर के स्वर्ण बाँट दिया करता था और इस तरह फालतू खर्चों के कारण उसने राज्य के कोष को कंगाल बना दिया. इस तरह व्यर्थ गंवाए धन की भरपाई के लिए तुगलक ने उपजाऊ जमीन वाले किसानों पर कर बढ़ा दिए. शीघ्र ही, अत्यधिक करारोपण के चलते दुर्भिक्ष और विपत्ति के बोझ तले उसका राज्य चरमराने लगा. उसे अपनी गलतियों का अहसास हुआ और 1341 में सारे करों को समाप्त करने के बाद वह पूरी दिल्ली में खैरात से जुड़े कार्यों में हिस्सा लेने लगा.
तमाम कोशिशों के बाद भी जब शाही खजाने के भारी घाटे की भरपाई नहीं हो सकी, तब तुगलक ने एक और विनाशकारी प्रयोग किया जिसके अंतर्गत उसने सांकेतिक मुद्रा लागू की. उसके मन में सांकेतिक मुद्रा का विचार संभवतः उसके पड़ोसी चीन में कुबलई खान द्वारा जारी कागजी मुद्रा से आया था.
तुगलक को उसके मौद्रिक प्रयोग के नतीजों का पूर्वाभास नहीं था. उसने समझा था कि सांकेतिक मुद्रा की कीमत खजाने के उधार पर निर्भर था (जो उसके दक्कन विजय के बाद स्वर्ण भण्डार से भर गया था), लेकिन वह यह भूल गया था कि चिन्ह केवल सरकार को जारी करनी चाहिए.
परिणाम क्या हुआ ? लोगों ने अपनी ही हाथों से चिन्ह बनाने का तरीका निकाल किया और बाज़ार शीघ्र ही नकली सिक्कों से पट गया. स्टेनली लेन-पूले की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया : मेडिएवल इंडिया फ्रॉम द मोहम्मडन कान्क्वेस्ट टू द रेन ऑफ़ अकबर द ग्रेट (भारत का इतिहास : मुस्लिम विजय से महान अकबर के शासन तक का मध्ययुगीन भारत) के अनुसार, “एक-एक घर टकसाल बन गया था और लोग लाखों की संख्या में सिक्के बनाने लगे.” जाली मुद्रा की बदौलत उसकी प्रजा फिजूलखर्ची का जीवन जीने लगी, लोग गायें, हथियार, कपडे और जो कुछ नजर आता, सभी कुछ खरीदने लगे.
एक ओर स्थानिक राजा और ग्राम प्रधान दौलतमंद हो गए, तो दूसरी ओर इन सिक्कों का मोल कौड़ियों से भी बदतर हो जाने के कारण सरकार कंगाल हो गयी और सुलतान को मजबूर होकर अपना हुक्म वापस लेना पडा. उसके इस प्रयोग की भयानक असफलता में ताम्बे के तमाम सिक्कों को शाही खजाने की चांदी और स्वर्ण से बदलने के तुगलक के फैसले ने जले पर नमक का काम किया. राजधानी में हज़ारों मर्द और औरतों की भीड़ जमा हो गयी और तुगलक के पास ताम्बे के सिक्कों के पहाड़ के सिवा कुछ नहीं बचा.