Published: 01 सितंबर 2017
जब जहांगीर ने अपने बेटे को सोने से तौला
वह 31 जुलाई, 1607 का दिन था। भारत के मुग़ल सम्राट, जहांगीर ने अपने बेटे, शाहजादा खुर्रम की 15वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए उसे स्वर्ण मुद्राओं से तौलने का आदेश दिया। स्वर्ण से तौला जाना, असल में एक हिन्दू राजवंशीय परंपरा थी जिसे ‘तुलाधन’ कहा जाता था। जहांगीर के दादा और मनपसंद विचारों को स्वीकार करने में सदैव तत्पर, हुमायूँ ने इस रस्म को अंगीकार कर लिया था।
जहांगीर के पिता, अकबर ने इस रस्म को शाही जन्म दिवस समारोह का अभिन्न हिस्सा बनाया। स्वर्ण से तौलने की क्रिया बीमारी या अन्य दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में प्रायश्चित के रूप में सांत्वनादायक रस्म के लिए भी संपादित की जाती थी।
जहांगीर के जीवन वृतांत से जुड़ा एक चित्र है, तुज़ुक-ए-जहांगीरी जिसे सम्राट जहांगीर के दरबारी कलाकार मनोहर ने बनाया था। इसमें इस घटना का चित्रण है। ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित इस चित्रकारी में एक घटना का चित्रण है जिसमें शाहजादा खुर्रम को स्वर्ण तुला पर बैठा हुआ दिखाया गया है। तुला नीलम और अन्य रत्नों से जडि़त है। खुर्रम के सामने अंडाकार और चौकोर तस्तरियों में चाकू और खंजर, सोने के छोटे-छोटे मर्तबान, प्यालियाँ और थालियाँ रखीं हैं -ये सभी रत्नजडि़त हैं। दो और तस्तरियों में बेशकीमती रत्नों के कंठहार रखें हैं। शाहजादा के बगल में खड़े अधिकारी की पहचान जहांगीर के प्रधान सेनापति अब्दुल रहीम खान-ए-खानाँ के रूप में है। यह चित्र प्रत्यक्षतः जहांगीर के संस्मरणों की अंतिम प्रति के लिए तैयार की गई चित्रकारी के अलबम का हिस्सा है।
सम्राट जहांगीर रस्मी तौर पर सौर एवं चंद्र वर्ष दोनों के प्रथम दिन, यानी वर्ष में दो बार खुद को या अपने किसी एक बेटे को स्वर्ण मुद्राओं से तौला करता था। उसके बाद मुद्राओं को गरीबों और जरूरतमंदों में बाँट दिया जाता था।
दिलचस्प बात यह है कि शाहजादा खुर्रम बड़ा होकर जब शाहजहाँ बना, तब उसने भी अपनी बेटी जहाँआरा को इसी तरह तौलवाया था, जब वह जलने के घाव से स्वास्थ्यलाभ कर रही थी।
सर थॉमस रो (1581-1644), जो मुगल दरबार में इंग्लैंड का प्रतिनिधि और अंग्रेज राजनयिक था, ने एक बार जहांगीर को उसके (जहांगीर के) जन्म दिवस पर तौले जाते हुए देखा था। उसने अपने संस्मरण में लिखा है, ‘बेहिसाब सोने से बने तराजू विशाल ढाँचों और स्वर्णजटित आडा शहतीर से झूल रहे थे। तराजू के किनारों पर नीलम और फि़रोज़ा के छोटे-छोटे टुकड़े जड़े थे जबकि सोने की जंजीरें बड़ी और भारी-भरकम थीं और रेशम की रस्सियों से उन्हें मजबूती दी गई थी।'
‘सम्राट आकर अपने पैरों पर बैठ गया और उसके वजन की बराबरी में दूसरी पलड़े पर अनेक बोरियाँ रखीं जाने लगीं जिन्हें छः बार बदला गया।‘ रो ने लिखा है कि सम्राट को बोरियों में भरी विभिन्न वस्तुओं, जैसे कि स्वर्ण, आभूषण और बहुमूल्य रत्नों के अलावा कई ताव स्वर्ण पत्रक, रेशम, लीनन के कपड़ों और मसालों से तौला गया था।