Published: 12 सितंबर 2017
स्वर्ण चित्रकारी से दीवारों की सजावट
सादे दीवारों के बदले सुसंगत सजावट, आकर्षक रूप और अनुभव, आदि कारणों से दीवारों पर चित्रकारी (वाल-पेंटिंग) लगाए जाते हैं. भारत में पुरानी शैली से लेकर आधुनिक बनावट वाले घरों और कार्यालयों की दीवारों पर हमेशा से पौराणिक कथाओं, संस्कृति, आदि से जुड़ी कलाकृतियाँ टाँगी जाती रहीं हैं.
प्राचीन कलाकृतियों में भारतीय कलाकारों की असाधारण कारीगरी और प्रतिभा दिखाई देती है. दिलचस्प बात यह है कि प्राचीन भारतीय कलाकार अपने ग्राहकों की पसंद को समझते थे और आमतौर पर उसी के अनुसार देवी-देवताओं, पौराणिक घटनाओं, वनों एवं वन्य जीव-जंतुओं आदि की चित्रकारी करते थे. परन्तु, राजसी और धनी ग्राहकों की मांग कुछ विशिष्ट कलाकृति की रहती थी. इस प्रकार, स्वर्ण के प्रति भारतीय लोगों की आसक्ति को देखते हुए, कलाकारों ने इस पीले धातु का पूर्णरूपेण या आंशिक प्रयोग करके अपनी उत्कृष्ट कलाकृतियों की रचना की.
तंजौर चित्रकारी स्वर्ण से बनी सबसे लोकप्रिय चित्रकारी है. इस आलेख में हम कुछ ऐसी कलाकृतियों से आपका परिचय करा रहे हैं, जिनसे स्वर्ण के प्रति भारत का प्रेम झलकता है.
मैसूर चित्रकारी : इस चित्र कला का उद्भव विजयनगर राजवंश के काल में हुआ था, जो कला सृजन का संरक्षक था. मैसूर चित्रकारी में अधिक पतले स्वर्ण फलक का प्रयोग किया जाता है. इन चित्रकारी की अधिकतर संकल्पना हिन्दू देवी-देवताओं और हिन्दू पुराणों से सम्बंधित होती हैं. भारतीय मैसूर चित्रकारी की शोभा, सुन्दरता और गूढता देखकर लोग सम्मोहित हुए बिना नहीं रह पाते.
राजपूत चित्रकारी : इस चित्रकारी का उद्भव राजाओं-रजवाड़ों की धरती, राजस्थान में राजपुताना काल में हुआ था. राज्य द्वारा रामायण से लेकर राजपूत राजवंशों के दरबार के दृश्यों पर आधारित विभिन्न संकल्पनाओं के चित्रण वाली राजपूत चित्रकारी को प्रोत्साहित किया जाता था.
कलाकार, इन चित्रकारियों को जीवंत बनाने के लिए, रंगों के अतिरिक्त वानस्पतिक स्रोतों, कतिपय खनिजों और शंख का प्रयोग करते हैं. इस जटिल कलाकृति में रंग भरने के लिए महीन ब्रश का ही प्रयोग किया जा सकता है. चित्रकारी में पीतवर्ण स्वर्ण के प्रयोग से इसका राजसी स्वरुप झलकता है और इसकी शोभा बढ़ जाती है.
कोरी दीवार पर राजपूत चित्रकारी से कमरे के भीतर राजसी और भव्य आभा उत्पन्न होती है.
इन चित्रकारियों के अतिरिक्त, मुरक्का और थंका कलाकृतियों (जिनका उद्भव क्रमशः फारस और तिब्बत में हुआ था) में भी स्वर्ण का प्रयोग किया जाता है और भारत में इनकी काफी पूछ है. स्वर्ण के प्रति भारतीयों का प्रेम केवल स्वर्णाभूषणों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अनेक अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होता है – चित्रकारी भी उन्ही रूपों में से एक है.