Published: 12 मार्च 2018
स्वर्णिम शब्द अक्सर सुनने में नहीं आते
क्या आप शब्दों के प्रयोग में उस्ताद हो गए हैं? क्या लोग उतना ही अच्छा बोलते हैं जितना कि आप? अगर आप उत्तर के लिए घबरा रहे हों, तो चिंता छोड़ दें. सदियों से अभिव्यक्ति में कमजोर लोगों के लिए सामान्य अभिव्यक्तियाँ काम आती रहीं हैं. हमने स्वर्ण से जुड़े पांच कहावतों को एकत्र किया है और उनकी उत्पत्ति की कहानी पर प्रकाश डाला है.
चमकने वाली हर वस्तु स्वर्ण नहीं होतीसबसे पहले शेक्सपियर ने मर्चेंट ऑफ़ वेनिस में इस वाक्यांश का उल्लेख किया था, जिसका अर्थ है कि किसी वस्तु का सही मूल्य उसके बाहरी रूप में निहित नहीं होता है. इस नाटक की पात्र पोर्शिया ने जांच का एक नायाब तरीका निकाला ताकि वह सर्वोत्तम पति का चुनाव कर सके. उसने तीन मंजूषाएं रखी – एक स्वर्ण का, एक चांदी का और एक सीसे का. प्रथम विवाहार्थी, मोरक्को का राजकुमार, सीधे स्वर्ण मंजूषा के पास गया, लेकिन अफ़सोस की खाली हाथ लौटा. मंजूषा के भीतर रखे पत्रक पर लिखा था – “चमकने वाली हर वस्तु स्वर्ण नहीं होती/आपने इसे अक्सर सुना होगा....” ‘अलविदा’ कहने के पहले सबसे निर्मम अस्वीकार के रूप में पत्रक पर मूर्ख राजकुमार के लिए यह भी लिखा था की, “ठीक है, तुम्हारा व्यवहार ठंठा है.” ओह!
स्वर्ण के ढेर पर बैठनाइसका अर्थ है की आप शीघ्र ही अतुलनीय धन के मालिक बनने वाले है. हम दौलत की बाढ़ की बात कर रहे हैं जो आने वाली है. उदाहरण के लिए, आपने मर्लिन मुनरो की गोपनीय डायरी खोज ली है. या फिर आपको अभी-अभी एक विशेष लाभकारी कारोबार विरासत में मिली है. यह वाक्यांश शब्दशः सबसे पहले 1877 में बिग हॉर्न, यूएसए में बोला गया था. एक थका घुड़सवार सैन्य अधिकारी, जो अपने सैनिक पोशाक में अमेरिकी मूलवासियों की खोज कर रहा था, आराम करने के लिए बैठ गया. पास के एक सैनिक को रोशनी की चमक दिखाई दी और वह अचानक चिल्ला उठा, “हे भगवान कैप्टेन, आप स्वर्ण की ढेर पर बैठे हैं!” यकीन करें या नहीं करें, ऐसा ही था. और इसी के कारण यह मुहावरा प्रचलित हुआ.
इन्द्रधनुष के अंतिम छोर पर स्वर्ण पात्र खोजनाभरोसा करें की आयरलैंडवासी कुछ सुन्दर लेकर आयेगा. यह कहावत भाषा में वास्तविक घटना का पता चलने के अर्थ में इस्तेमाल होता है. किन्तु इसकी उत्पत्ति की कहानी से पता चलता है की वास्तविक घटना भ्रम है. आयरलैंड की लोकोक्ति के अनुसार, लेप्रेकॉन (पौराणिक जंतु जो सामान्यतः छलिया होते हैं) ने पूरे आयरलैंड में स्वर्ण पात्रों को गाड़ दिया. किसी को पता नहीं था की वे कहाँ गड़े थे और मान लिया कि जहां वह पात्र गड़ा था, वहाँ इन्द्रधनुष का अन्तिम छोर था. निस्संदेह, इन्द्रधनुष का अंतिम छोर कोई पता नहीं लगा सकता, इसलिए इस कोशिश में निराशा ही हाथ लगनी थी.
धन के साथ अनेक संभावनाएं आ सकती हैंपैसों से लगभग हर चीज की जा सकती है. मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा कोई नहीं हुआ जो इससे इनकार कर सके. हालांकि इस कहावत का पहला लिखित उल्लेख अंगरेजी के नाटककार जॉन लिली ने 1580 में किया था, किन्तु इसे 1969 में आयी रिंगो स्टार और पीटर सेल्लर्स अभिनीत कल्ट फिल्म ‘द मैजिक क्रिस्चियन’ से लोकप्रियता मिली. फिल्म निर्माता जोसफ मैकग्रा ने इस हास्य प्रधान फिल्म को इसी कहावत पर केन्द्रित किया था.
स्वर्ण जैसा खरायद्यपि इसका अर्थ आज्ञाकारी होना होता है, इस अभिव्यक्ति का मूल धन में हैं. जब कागजी मुद्रा का अपना कोई मूल्य नहीं होता था, तब इस प्रतिज्ञा के साथ वचन पात्र या आईओयु संपादित किया जाता था की कागज़ स्वर्ण जितना ही खरा है. अनेक वर्षों में इस अभिव्यक्ति का अर्थ बदल गया. अंततः चार्ल्स डिकेन्स द्वारा अपने उपन्यास ‘अ क्रिसमस कैरल’ में प्रयोग के बाद यह कहावत प्रचलन में स्थापित हो गयी.