Published: 07 सितंबर 2017
संपूर्ण विश्व भर में मौजूद स्वर्ण स्मारक
शास्त्रगत प्रकारों में उपयोग के अलावा, स्वर्ण को समृद्धि, उत्तम भक्ति और भाग्य का प्रतीक माना जाता है। लोगों द्वारा स्वर्ण को पहना जाता है और इसे उपहार में भी दिया जाता है और यह माना जाता है कि यह सकारात्मक ऊर्जा देता है। इसमें कोई आश्चर्य नही है कि ऎतिहासिक अनेक स्मारक हैं जिन्हे मनुष्य द्वारा भक्ति व समर्पण स्वरुप अमूल्य धातु द्वारा बनाया गया है।
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स्वर्ण बुद्ध, बैंकॉक, थाईलैन्ड
यदि आप थाईलैन्ड जाते है, तब वाल ट्रैमिट को देखना ना भूलें। यह मंदिर बुद्ध की एक वृहद प्रतिमा के लिये प्रसिद्ध है जो संपूर्ण स्वर्ण की बनी हुई है। यह मूर्ति 9.8 फुट लंबी है ऊर इसे 18 कैरेट के 5500 किलोग्राम से भी अधिक स्वर्ण से बनाया गया है। इस मूर्ति की कीमत लगभग 300 मिलियन डॉलर्स है!
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डोम ऑफ रॉक, जेरुसलम, इजराइल
जेरुसलम को कई बार सिटी ऑफ गोल्ड या स्वर्ण नगरी कहा जाता है, खासकर गीतों में। ऎसा इसलिये क्योंकि यहां पर मनोरम डोम ऑफ रॉक है जो कि जेरुसलम में मौजूद सबसे पुरानी मस्जिद है। प्रारंभिर रुप से स्वर्ण से बना यह गुम्बद अब तांबे और एल्युमिनियम से बनाया गया है और आगे चलकर इसे स्वर्ण के वर्क से ढ़क दिया गया है। यह कहा जाता है, कि जब इस गुम्बद को बनाया गया था, तब इसे 100000 सोने के सिक्कों को पिघलाकर बनाया गया था। आगे चलकर वर्ष 1998 में जब इसका नविनीकरण किया गया, तब इसमें 80 किलोग्राम स्वर्ण और जोड़ा गया।
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बुद्ध दोरदेन्मा, भूटान
कोएन्सेल फुडेरॉन्ग नेचर पार्क जो कि ऊंची पहाडी पर स्थित है, वाअं पर बुद्ध दोरदेन्मा अर्थात बुद्ध की प्रतिमा विश्व में सबसे बड़ी है। यह 180 फुट लम्बी है, यह कांस की बनी है और उसपर सोने की परत चढ़ाई गई है। परत चढ़ाना अर्थात वह प्रक्रिया होती है जिसमें स्वर्ण का पेन्ट या स्वर्ण का वर्क चढ़ाया जाता है। रोचक बात यह है कि इस वृहदाकार मूर्ति में अनेक नन्ही बुद्ध की मूर्तियां भी शामिल है। इसमें 100,000 8-इन्च की और 25,000 12-इन्च की बुद्ध की प्रतिमाएं हैं। ये सारी 125,000 बुद्ध प्रतिमाएं भी कांस्य की बनी हैं जिनपर स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है।
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स्वर्ण मंदिर, अमृतसर, भारत
चौथे सिख गुरु राम दास साहिब द्वारा स्थापित यह मंदिर सोलहवी शताब्दी में बनाया गया था, स्वर्ण मंदिर अमृतसर में मौजूद है और यहां पर प्रतिदिन पूरे विश्व से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। वर्ष 1830 में, इसपर 162 किलोग्राम स्वर्ण की परत चढ़ाई गई थी जिसकी उस समय की कीमत रु. 65 लाख थी। वर्ष 1990 में, इसपर पुन: 500 किलो की 24 कैरेट स्वर्ण की परत चढ़ाई गई जिसकी लागत लगभग 140 करोड थी। 24 स्वर्ण की परतें चढ़ाई गई और यह नविनीकरण का कार्य चार वर्षों तक चला। इस स्वर्ण की परत का कार्य पूरे भारत से आने वाले कुशल कारीगरों द्वारा किया गया था।
अगली बार जब भी आप इन स्थानों पर घूमने के लिये जाएं, तब इन स्मारकों को अपनी सूची में अवश्य रखें और स्वर्ण की दिव्यता को अनुभूत करें।