Published: 01 सितंबर 2017

मंगलसूत्र - प्रेम का पवित्र धागा

Gold Mangalsutra design

भारतीय विवाहोत्सवों को आम तौर पर ”भव्य भारतीय विवाहोत्सव“ कहा जाता है। इस पवित्र और भव्य अवसर के वैभवपूर्ण समारोहों के लिए यह उपाधि उचित ही है। भारत में विवाह एक पवित्र अनुष्ठान होता है और वैसा ही पवित्र होता है, विवाह का प्रतीक - मंगलसूत्र, जिसे आम तौर पर स्त्रियाँ धारण करतीं हैं।

भारत की विविध संस्कृतियों में अलग-अलग वैवाहिक प्रतीक विद्यमान हैं। इन प्रतीकों में राज्य, जाति या समुदाय के अनुसार भिन्नता होती है। मंगलसूत्र, यानी विवाह का पवित्र धागा, विवाह का एक ऐसा प्रचलित प्रतीक है जो हमारे विविधतापूर्ण देश के लगभग सभी क्षेत्रों में पहना जाता है।

यहाँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयुक्त मंगलसूत्र के अलग-अलग रूपों की सूची दी जा रही है;


तमिलनाडु की थाली कोडी:

मंगल धारणम् एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें वर अपनी वधू पर पहली बार थाली बाँधता है। इस अनुष्ठान के द्वारा वधू को ”सुमंगली“, यानी पवित्र विवाहित स्त्री की संज्ञा दी जाती है। थाली दक्षिण भारत के प्रचीनतम स्वर्ण आभूषणों में से एक है। देवसेना के साथ युद्ध के देवता स्कंद के वैवाहिक आख्यान में इसका विवरण मिलता है। थाली कोड़ी को थिरुमंगलयम्, मंगलयम्, थाली या कोडी भी कहा जाता है।


केरल की थाली और मिन्नु:

केरल को ‘ईश्वर के देश’ की संज्ञा दी गई है और यहाँ हिन्दु एवं ईसाई समुदायों के अलावा अनेक छोटे-छोटे धर्मों के अनुयायी रहते हैं। ईश्वर के देश में हिन्दुओं और ईसाइयों के साथ-साथ अन्य लघु समुदायों का मिश्रण है। केरल के हिन्दू मंगलसूत्र को ”थाली“ कहते हैं, जबकि ईसाई ”मिन्नु“ कहते हैं। ईसाई धर्म के प्रतीक स्वरूप हृदयाकार स्वर्ण पदक पर गढ़े गए क्रॉस के साथ लोलक (पेंडंट) प्रेम की अवधारणा प्रकट करता है। यह जानना दिलचस्प होगा कि मिन्नु धागे की सात लड़ियों में गुँथा रहता है जो वधू, वर, दंपति के माता-पिता और गिरजाघर का द्योतक है।


आँध्र प्रदेश का पुस्तेलु:

साधारणतः, मंगलसूत्र वर के परिवार की ओर से वधू के लिए लाया जाता है। तथापि, आँध्र प्रदेश में इस अनुष्ठान का स्वरूप थोड़ा भिन्न है। तेलुगु वधुओं द्वारा धारण किया जाने वाला पुस्तेलु, यानी मंगलसूत्र में दो गोलकार चक्र लगे होते हैं जिनमें से एक-एक वर और वधू के परिवार द्वारा लाया जाता है। ये चक्र एक पीले धागे या सोने की जंजीर पर गुँथे होते हैं और बीच में काले एवं मूँगा के मनके लगे होते हैं। विवाह संस्कार के समय वर द्वारा वधु के गले के चारों ओर धागे में तीन गाँठें लगाई जाती है।

विवाह होने के सोलहवें दिन इन चक्रों को एक साथ कर दिया जाता है। यह एक छोटा अनुष्ठान है जिसे वर के परिवार के बुजुर्ग द्वारा संपादित किया जाता है। ऐसा मान्यता है कि पुस्तेलु को दूसरी स्त्री की बुरी नजरों से छिपा कर रखना चाहिए।


गुजरात का पारंपरिक मंगलसूत्र:

गुजरात राज्य में सोने की तारों और परिष्कृत स्वर्ण लोलक से जुड़े काले मनकों से पारंपरिक मंगलसूत्र बनाया जाता है।


महाराष्ट्र का मंगलसूत्र:

महाराष्ट्र का मंगलसूत्र गुजरात के मंगलसूत्र के समान होता है दो छोटी बाटियों (कटोरी) के साथ सोने की तारों पर काले मनकों की दो लड़ियाँ होती हैं। मनकों की ये दो लड़ियाँ पति एवं पत्नी का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसी मान्यता है कि काले मनकों से बुरी नजरें नहीं लगतीं। दो स्वर्ण बाटियाँ शिव एवं शक्ति का प्रतीक हैं।


कर्नाटक का कार्थामणि पाठक:

कार्थामणि और पाठक कर्नाटक के कूर्ग क्षेत्र के कोडवा समुदाय की वधुओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों के दो अलग-अलग रूप हैं। पाठक एक बड़ा स्वर्ण मुद्रका लोलक होता है जिस पर लक्ष्मी या महारानी विक्टोरिया की छवि उत्कीर्ण रहती है और मुद्रा की परिधि पर छोटे-छोटे गोलाकार नीलम टँके रहते हैं। इस लोलक पर एक फणधर नाग स्थापित रहता है जो उर्वरकता का प्रतीक है। कभी-कभार इसके साथ उज्ज्वल मोती भी लटकाया जाता है।

”कार्थामणि“ एक कंठहार है जिसे पाठक के साथ पहना जाता है। इसे मूँगा और स्वर्ण मनकों को धागे में पिरो कर बनाया जाता है। धागे के बदले स्वर्ण की जंजीर का प्रयोग भी होता है। कोडावा वधू अपने विवाह के एक दिन पहले कार्थामणि पाठक धारण करती है। अन्य संस्कृतियों के समान वर इसे वधू को नहीं पहनाता, बल्कि विवाह के एक दिन पहले वधू की माँ पहनाती है।


बिहार का ताग पाग:

यह मंगलसूत्र महाराष्ट्र में प्रयुक्त मंगलसूत्र के समान होता है। तथापि बिहार में लोलक का चुनाव वधु स्वयं करती है।

इस तरह, अब आप जान गए होंगे कि हमारे देश में कितने प्रकार के मंगलसूत्र धारण किए जाते हैं।