Published: 06 जुलाई 2017
गोलडेन टेंपल के बारे में 7 रोचक बातें
अमृतसर में गोल्डेन टेम्पल की स्थापना 16वीं शताब्दी में चौथे सिख गुरु, गुरु राम दास साहिब ने की थी। गुरुद्वारे में हर महीने हजारों लोग भक्ति-आराधना के लिए आते हैं। उम्मीद है आप भी जल्द ही यहां आने के लिए योजना बना रहे होंगे। जब यहां आने के लिए आप होटल की बुकिंग कर रहे हैं और अपना सामान बांध रहे हैं, तो यहां की कुछ रोचक बातें जरूर जान लीजिए। खूबसूरत गोल्डेन टेम्पल की ये बातें जानकार आप हैरान रह जाएंगे।
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महाराजा रणजीत सिंह ने गोल्डेन टेम्पल के निर्माण के करीब दो सौ साल बाद 1830 में इस पर सोने की परत चढ़ाई थी। इस काम में 162 किलोग्राम सोने का इस्तेमाल किया गया था, जिसकी कीमत उस समय 65 लाख रुपए थी।
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90 के दशक में इसे 500 किलोग्राम सोने के साथ पुनर्निर्मित किया गया था। आज अगर इतने सोने की कीमत की बात करें तो यह 140 करोड़ रुपए से अधिक होगी।
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गोल्डेन टेम्पल के नवीनीकरण का यह काम 1995 से 1999 तक चला।
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गोल्डेन टेम्पल पर सोने के परत की चढ़ाई देश के अलग-अलग हिस्सों से आए कुशल कारीगरों ने की थी।
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यह सब 24 कैरेट सोने का बना है, जो कि भारतीय घरों में मौजूद सोने के मुकाबले ज्यादा शुद्ध है। भारतीय घरों में आमतौर पर 22 कैरेट का ही सोना रखा जाता है।
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महाराजा रणजीत सिंह ने गोल्डेन टेम्पल पर परत चढ़ाने में केवल 7-9 परतों का ही इस्तेमाल किया था। लेकिन 4 साल के लंबे नवीनीकरण के दौरान 24 परतें चढ़ाई गईं।
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इसका यश लगभग 25 वीं सदी तक रहेगा।
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इसका रखरखाव पूरी तरह दान के जरिये किया जाता है। लंगर की सेवा के साथ ही मंदिर की सफाई, रखरखाव और खाना पकाने का काम स्वयंसेवक करते हैं। काम के बदले वे एक भी पैसा नहीं लेते हैं।
तो, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हरमंदिर साहिब उर्फ गोलडेन टेंपल में हर महीने तीस लाख से अधिक श्रद्धालू आते हैं। यहां कि रात भी उसी तरह शानदार होती है जैसा दिन के दौरान होता है।