Published: 12 सितंबर 2017
प्रमाणिक और केडीएम स्वर्ण का फर्क
भारत में अधिकाँश स्वर्ण की खरीदारी आभूषण के रूप में पहनने के लिए की जाती है, जबकि स्वर्ण के सिक्कों और छड़ों को निवेश के ख्याल से खरीदा जाता है. स्वर्ण खरीदने वालों की सबसे बड़ी चिंता इसकी गुणवत्ता को लेकर रहती है कि यह 22 कैरट का है या 24 कैरट का.
भारत में उपलब्ध स्वर्ण की गुणवत्ता की चिंता के कारण गत समय में अनेक लोग विदेश भ्रमण के समय स्वर्ण खरीदा करते थे. तथापि, भारत में प्रमाण-चिन्ह (हॉलमार्किंग) की शुरुआत के बाद अब ऐसा करना आवश्यक नहीं रह गया है (हालांकि यह सच है कि अतिप्रतिष्ठित अधिकाँश जौहरी किसी भी रूप में स्वर्ण की बिक्री में स्वर्ण की शुद्धता के अत्यंत उच्च मानक का पालन करते रहे हैं). कुछ वर्ष पहले, केडीएम (कैडमियम मिश्रित) आभूषणों की भारी मांग थी, हालांकि अब स्वास्थ्य संबंधी खतरों के कारण ऐसे आभूषण नहीं बनाए जाते हैं. अब ज़रा केडीएम और प्रमाणिक स्वर्ण का फर्क देखें.
प्रमाणिक स्वर्ण : शुद्धता का आश्वासनप्रमाण-चिन्ह के साथ प्रमाणिक स्वर्ण ग्राहकों को स्वर्ण आभूषणों की गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त करने की विधि है. यह स्वर्ण भारत मानक ब्यूरो द्वारा अनुज्ञापित जांच केन्द्रों में से किसी एक से प्रमाणित होता है. प्रमाण-चिन्ह द्वारा प्रमाणित किया जाता है कि संबंधित आभूषण भारत में उपभोक्ता सामग्रियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी संस्थान, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित मानक के अनुरूप है. विशेष तौर पर, यह सुनिश्चित करता है कि स्वर्ण आभूषण में केवल निर्धारित मात्रा में ही धातुओं का मिश्रण किया जाएगा.
प्रमाणिकता की मुहर में निम्नलिखित चार तत्वों का समावेश रहता है :- बीआइएस का लोगो
- खुदरा विक्रेता का लोगो
- कैरट में शुद्धता और पतलापन (916, 875, आदि)
- जांच केंद्र का लोगो.
स्वर्ण आभूषण की शुद्धता का उल्लेख प्रमाण-चिन्ह मुहर के लेजर खुदाई में किया जाता है. प्रमाण-चिन्ह द्वारा प्रमाणित स्वर्ण आभूषणों की एक सीमा यह है कि भारत में अभी भी जांच केन्द्रों की संख्या पर्याप्त नहीं है और सभी कैरट श्रेणी के लिए प्रमाण-चिन्ह अनिवार्य नहीं किया गया है.
केडीएम स्वर्णहालांकि केडीएम स्वर्ण लोकप्रिय रहा है, लेकिन स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव सिद्ध होने के कारण इसका प्रचलन बंद कर दिया गया. नीचे इसका उपयोग समाप्त होने के कारणों की चर्चा की गयी है.
स्वर्ण आभूषणों को इसके अलग-अलग हिस्सों को टांक कर सम्पूर्ण रूप से तैयार किया जाता है. टांका लगाने के लिए वैसे धातु का प्रयोग किया जाता है जिसके पिघलने का तापमान (गलनांक) स्वर्ण पिघलाने के तापमान से कम हो. टांका लगाने वाला पदार्थ परम्परागत रूप से 60 प्रतिशत स्वर्ण और 40 प्रतिशत ताम्बा का मिश्रित धातु हुआ करता था.
लेकिन इस विधि के प्रयोग से स्वर्ण में अशुद्धता आ जाती थी. उदाहरण के लिए, अगर इस तकनीक से 22 कैरट स्वर्ण का कंगन बनाकर उसे दोबारा बिक्री पर पिघलाया जाता तो न्यून शुद्धता के कारण इसका मूल्य घट जाता. प्रसंस्करण के बाद स्वर्ण की शुद्धता बढाने के उद्देश्य से ताम्बा के बदले कैडमियम का प्रयोग आरम्भ किया गया.
ऐसा करने का मुख्य फायदा यह था कि स्वर्ण और ताम्बा के प्रचलित टाँके के विपरीत स्वर्ण और कैडमियम के मिश्रण में इन दोनों का अनुपात क्रमशः 92 प्रतिशत और 8 प्रतिशत था. इस तरह स्वर्ण की 92 प्रतिशत शुद्धता सुनिश्चित होती थी. कैडमियम से टाँके गये आभूषण को आम भाषा में केडीएम आभूषण कहा जाता था. तथापि, पता चला कि यह स्वास्थ्य के लिए भारी हानिकारक है और इस कारण से आईटी तकनीक को प्रतिबंधित कर दिया गया और इसके बदले दूसरे उन्नत मिश्र धातुओं का प्रयोग किया जाने लगा.