Published: 29 अक्टूबर 2018
मध्य पूर्वी देशों में स्वर्ण की भूमिका
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सदियों से स्वर्ण मध्य पूर्वी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। कहने की जरूरत नहीं; आज भी इन देशों में स्वर्ण की आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और सौंदर्यबोध के नजरिए से बेहद गहरी पकड़ है।
मध्य पूर्व में स्वर्ण की पहली झलक
बाइबिल के संदर्भ मध्य-पूर्वी समाज में सोने के महत्व पर जानकारी देने वाले प्रमुख स्रोतों के रूप में जाने जाते हैं। उन कालों में स्वर्ण सबसे बड़ा मौद्रिक मानक माना जाता था। तीन सबसे आम वजन अर्ध-शेकेल, शेकेल और टैलेंट थे। स्वर्ण टैलेंट सबसे बड़ा मौद्रिक मानक था और आम लोगों द्वारा सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली इकाई थी, जिसका वजन 35 किलोग्राम था। स्वर्ण मिश्रित धातु 'शेकेल' को इलेक्ट्रम या हरा स्वर्ण के रूप में भी जाना जाता है, जिसे आमतौर पर माप की इकाई के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था और जिसका वजन 11.3 ग्राम था। इसका मतलब है कि 3000 शेकेलों एक टैलेंट के बराबर होते थे।
मजेदार तथ्य: आज सोने की एक टैलेंट की कीमत लगभग 432,132 डॉलर के बराबर है!
और यह तो सिर्फ शुरुआत थी; स्वर्ण जल्द ही आभूषणों में इस्तेमाल होने वाली सबसे पसंदीदा धातु बन गया।
अंतरमहाद्वीपीय क्षेत्र में पहला स्वर्ण-कार्य 2400 ईसा पूर्व का है, जब मेसोपोटामिया (अब इराक) में शाही कब्रिस्तान में लकड़ी के वीणा और बीन पर स्वर्णकारी की हुई थी। तभी से, सोना मंदिरों, मकबरों, मूर्तियों, हथियारों, कांच की वस्तुओं और पवित्र-स्थलों को सजाने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। ऐसा भी माना जाता है कि मध्य पूर्व की प्राचीन सभ्यताओं में 6000 वर्षों से आभूषणों के लिए स्वर्ण इस्तेमाल किया गया है।
सोने के इतने व्यापक उपयोग के कारण ही समय-समय पर विभिन्न प्रकार की धातुओं की खोज हुई। उन कालों में हुई कुछ दिलचस्प खोजें इस प्रकार हैं।
सोने की शुद्धता का परीक्षण करने की सबसे प्राचीन ज्ञात विधियों में से एक है आग में तपाना यानी अग्नि परख (संलयन प्रक्रिया द्वारा अशुद्धियों को स्वर्ण से निकालना) जिसे तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व बेबीलोनिया निवासियों ने खोजा था।
कुछ सदियों बाद, मिस्र के लोगों ने सोने की मजबूती और स्थायित्व बढ़ाने के लिए उसमें धात्विक मिश्रण करने, और इसमें रंग भरने की कला भी सीखी।
यह लगभग वही काल था, जब मिस्र के लोगों ने प्रक्षेप यानी ढलाई यानी कास्टिंग विधि का प्रयोग करना शुरू किया, जिसे पिघला-मोम कास्टिंग कहा जाता है (मोम की मूर्ति से सोने की मूर्ति बनाना)। आज भी महीन, जटिल मूर्तियां बनाने के लिए इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है।
ये कुछ चीजें थीं, जिनके चलने स्वर्ण ने प्राचीन मध्य पूर्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए देखते हैं कि आज मध्य पूर्व वैश्विक स्वर्ण समुदाय में अपनी भूमिका कैसे निभा रहा है:
स्वर्ण का आधुनिक-दौर का हब यानी केंद्र
स्वर्ण की दुनिया का सबसे बड़ा स्रोत और दूसरा सबसे बड़ा बाजार मध्य पूर्व ही है। दुबई यानी 'सिटी ऑफ़ गोल्ड' ने स्वर्ण के वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में इस क्षेत्र को स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
लेकिन, यह सब हुआ कैसे?
1900 के दशक में, दुबई के कर-मुक्त और व्यापार-अनुकूल माहौल ने व्यापारियों को अपनी और जबरदस्त तरीके से खींचा और उन्होंने वहां खाड़ी और बंदरगाह के आसपास दुकानें खोलना शुरू किया। समय के साथ, अधिकाधिक रूप से व्यापारियों ने वहां अपनी दुकानें खोलीं और सोना बेचना शुरू किया। दुबई ने भी किसी भी स्वर्ण बाजार की सफलता के लिए जरूरी महत्वपूर्ण घटक प्रदान किए, जैसे कि - सुरक्षा, निश्चितता, व्यवसाय करने में आसानी, और स्वर्ण की मांग और आपूर्ति के स्रोतों के निकटता। आज, दुबई के शानदार स्वर्ण शॉक यानी बाजार में - जोकि दुनिया के सबसे बड़े सोने के खुदरा बाजारों में से एक है - 400 से अधिक खुदरा और थोक सोने के स्टोर विराजमान हैं। दुनिया-भर से आभूषण प्रेमी सोने के आभूषणों के कुछ बढि़या सौदे करने के लिए दुबई के इसी स्वर्ण सॉक में आते हैं।
चाहे वह आभूषण के रूप में हो या धन के रूप में, मध्य पूर्व के राष्ट्रों ने हमेशा राजनीतिक और आर्थिक अशांति के विरुद्ध स्थिरता बनाए रखने के लिए सोने को बहुत महत्व दिया है। मध्य पूर्व में खरीदे गए दो-तिहाई आभूषण बचत के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, खासतौर पर उन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बैंकिंग प्रणाली अभी तक नहीं पहुंच पाई है। स्वर्ण ने मध्य पूर्व में महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा की भावना भी प्रदान की है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि स्वर्ण उन्हें किसी भी तरह के दुर्भाग्य से बचाता है।