Published: 13 फ़रवरी 2020
निवेश के रूप में सोना सबसे उपयोगी वस्तु क्यों है?
देखा जाए तो अधिकांश निवेशकों के लिए वस्तुओं में निवेश करना बेहद जरूरी है, यहां हम इस चीज पर नज़र डालते हैं कि छोटी और लंबी अवधि तक चलने वाली अन्य वस्तुओं की तुलना में सोना कैसा प्रदर्शन करता है।
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सोना मूल्य-महत्ता का बहुत ही भरोसेमंद भंडार है
इतिहास के किसी-न-किसी पड़ाव में, नमक से लेकर तंबाकू से लेकर समुद्र तक की, सभी प्रकार की नरम कृषि वस्तुओं का इस्तेमाल मुद्राओं के रूप में किया गया है। लेकिन समय के साथ, इन नरम वस्तुओं का उपयोग कई कारणों से बंद भी किया जाता रहा :
- इतिहास के किसी-न-किसी पड़ाव में, नमक से लेकर तंबाकू से लेकर समुद्र तक की, सभी प्रकार की नरम कृषि वस्तुओं का इस्तेमाल मुद्राओं के रूप में किया गया है। लेकिन समय के साथ, इन नरम वस्तुओं का उपयोग कई कारणों से बंद भी किया जाता रहा :
- एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने पर इनका मूल्य बरकरार नहीं रहता था। उदाहरण के लिए, अफ्रीका के कुछ हिस्सों में नमक का उपयोग नहीं किया जा सकता था, क्योंकि वहां इसकी बहुतायत थी। आज भी, उदाहरण के लिए, तेल उत्पादन भौगोलिक रूप से दुनिया के कुछ ही हिस्सों में अधिक केंद्रित है; जैसेकि, तेल के प्रमाणित भंडारों का 50% से ज्यादा अभी मध्य पूर्व में स्थित है।
- मुद्राओं के रूप में इनका उपयोग करना इन्हें इनके मूलभूत उपयोग यानी कि मानव उपभोग से दूर ले जाएगा
इन नरम वस्तुओं के बाद, धातुओं को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मुद्रा के रूप में तांबा, लोहा और चांदी प्रचलन में थे। हालांकि, ये धातुएं भी कुछ इसी तरह के कारणों की वजह से असफल ही रहीं :
- उदाहरण के लिए, चांदी या तांबे जैसी धातुओं के अनेकों औद्योगिक उपयोग हैं, और मुद्रा के रूप में इनके उपयोग से ये अपने मूलभूत उपयोग से दूर हो जाते हैं।
- समय के साथ, सोने के अलावा अन्य सभी धातुएं अपना मूल्य या मान खो जाती हैं, क्योंकि वे बदरंगी हो जाती हैं या जंग खा जाती हैं
वहीं सोना अधिक लचीली और कोमल धातु होने के कारण सर्वश्रेष्ठ है, जो विद्युत का सबसे बेहतरीन सुचालक भी है, यह उद्योगों में इस्तेमाल होने वाली बहुत मूल्यवान, महंगा और दुर्लभ धातु है। इसके अतिरिक्त, सोना रासायनिक रूप से निष्क्रिय है, जिसका अर्थ है कि यह समय के साथ बदरंग नहीं होती और अपनी आभा और चमक बनाए रखती है। इस तरह, चूंकि सोना लगभग अक्षय है, इसलिए अभी तक जितना भी सोना खानों-खदानों से निकाला गया है, वह अभी भी एक या दूसरे रूप में मौजूद है। जबकि अन्य धातुएं पहले इस्तेमाल या तो खत्म हो जाती हैं या बहुत कम मात्रा में बचती हैं, वहीं सोना रिसाइकल होने पर भी अन्य धातुओं की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में बचा रहता है।
नतीजतन, चांदी और प्लैटिनम जैसी अन्य बहुमूल्य धातुओं की तुलना में सोना ज्यादा प्रभावशाली पोर्टफोलियो बहुरूपी यानी डायवर्सिफायर है। जब बाजार अच्छा चल रहा होता है, तो सोना और ये अन्य धातुएं अच्छा प्रदर्शन करती हैं, और उनका संबंध सकारात्मक होता है। लेकिन जब बाजार में गिरावट आती है, तो चांदी और प्लैटिनम जैसी धातुओं का प्रदर्शन प्रभावित होता है, क्योंकि उनकी मांग काफी हद तक औद्योगिक मांग पर निर्भर होती है।
कुछ चुनिंदा औद्योगिक उपयोगों के कारण सोने के साथ ऐसी दिक्कतें नहीं आतीं, इसलिए बाजार में गिरावट आने पर भी इसका मूल्य-महत्ता बनी रहती है।
इन कारणों की वजह से, यह निष्कर्ष निकलता है कि सोने ने 1971 तक मुद्रा एंकर की भूमिका अदा की, जब अमरीका और दुनिया ने सोने के मानक को कागज के पैसे से आगे बढ़ाया। लेकिन आज भी, सोने के भंडार के रूप में देश की संपत्ति का निर्धारण करने में सोने की ही मुख्य भूमिका होती है, जो साल-दर-साल बढ़ ही रही है। सिर्फ 2018 में, केंद्रीय बैंकों ने सोने के मानक के अंत के बाद से किसी भी समय से ज्यादा सोना खरीदा — और यह प्रवृत्ति 2019 की पहली छमाही में भी जारी रही।
लंबे समय में, मुद्रा और अन्य परिसंपत्तियों ने अपने मूल्य में गिरावट का काल भी देखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, सोने ने ताउम्र के लिए अपना मूल्य बरकरार रखा है। प्राचीन काल से, सोने का इस्तेमाल एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक धन-संपदा को सौंपने और सहेजने के तरीके के रूप में प्रयुक्त होता रहा है।
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बहुरूपता मायने रखती है, क्योंकि अन्य परिसंपत्तियों में गिरावट आने पर भी सिर्फ सोना स्थिर रहता है
सोना और अन्य परिसंपत्तियों, जिनमें कि वस्तुएं भी शामिल हैं, का परस्पर संबंध गतिमय है, अर्थात अलग-अलग आर्थिक परिस्थितियों में अन्य संपत्तियों के साथ सोना अलग-अलग व्यवहार करता है। अन्य वस्तुओं की तरह, आर्थिक विकास की अवस्था में सोने का शेयरों के साथ परस्पर संबंध सकारात्मक होता है; और जब इक्विटी बाजार में वृद्धि होती है, तो सोने की कीमत भी बढ़ जाती है। लेकिन अन्य वस्तुओं के बिल्कुल उलट, अर्थव्यवस्था में मंदी की अवस्था, जिसमें अपस्फीति भी शामिल है, में भी सोना अच्छा प्रदर्शन करता है, जबकि अन्य कई चीजें धन या पूंजी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। सोने को संकट-मोचन वस्तु के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि यह भू-राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान भी अपना मूल्य-मान्यता बनाए रखता है। उदाहरण के लिए, ब्रेक्सिट के दौरान भारी अनिश्चितता में भी सोने की कीमतों में इस साल काफी ज्यादा हलचल देखी गई।
हालांकि सोने और तेल की कीमतें परस्पर जुड़ी हुई नहीं हैं, आम धारणा के उलट — एक समय में अगर इन दोनों का प्रदर्शन एक ही दिशा में चलता है, तो किसी दूसरे समय में इन दोनों का प्रदर्शन बिल्कुल विपरीत दिशा में हो सकता है।
तेल तो बिल्कुल एक जोखिमपूर्ण संपत्ति के रूप में व्यवहार करता है, जबकि सोना जोखिम-मुक्त संपत्ति के रूप में व्यवहार करता है।
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मुद्रास्फीति के जोखिम से बचाव के रूप में सोना
पोर्टफोलियो में निवेश करने के पीछे सबसे आम कारण है मुद्रास्फीति के जोखिम से बचाव। यह एक ऐसा समय होता है, जब वस्तुएं अन्य परिसंपत्तियों की तुलना में बहुत बेहतर प्रदर्शन करती हैं। लेकिन, ऐतिहासिक रूप से तो, विशेष रूप से लंबे समय में, सोना उन सभी में सबसे बेहतर प्रदर्शन करता है।
अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि हम जिस समय में रह रहे हैं, वह मुद्रास्फीति के लिए बहुत मौजू समय है। ‘’जब कोई सरकार बहुत सारा पैसा छापती है, तो आपके पास उन्हीं सामान और सेवाओं के लिए बड़ी मात्रा में पैसा होता है, जिससे कारण इतनी ज्यादा मुद्रास्फीति है। इसलिए, कागजी पैसा, जो आपके पास होता है, वह समय के साथ बेकार हो जाता है,” कौल जिम्बाब्वे के उदाहरण देते हुए आगे कहते हैं, ‘’जहां 2019 में मुद्रास्फीति 300% है, जोकि दुनिया में सबसे ज्यादा है।‘’ अस्थिरता की ऐसे माहौल में किसी के भी धन को संरक्षित करने के लिए, कौल किसी भी व्यक्ति के पोर्टफोलियो में 10-15% सोना शामिल करने का सुझाव देते हैं। इस वीडियो देखिए कि ‘’आज आप सोने में निवेश क्यों करें’’।
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सोने की आपूर्ति तो सीमित है, और मांग बढ़ेगी ही
सोना दुर्लभ की श्रेणी में आता है, जोकि इसके प्रति आकर्षण को बनाए रखता है। लेकिन केंद्रीय बैंकों सहित अन्य विविध प्रकार के संस्थागत निवेशकों के लिए एक सुसंगत निवेश के रूप में सोने के बाजार का आकार बहुत ही बड़ा है। अन्य वस्तुओं का आम तौर पर उत्पादन की बदलती दरों के कारण अल्पावधि वाली दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन सोने का उत्पादन अलग-अलग महाद्वीपों में एक समान बांटा जाता है, जिससे उतार-चढ़ाव के झटकों से बचाव होता है।
इससे यह तय करने में मदद मिलती है कि सोना अन्य वस्तुओं की तुलना में बहुत कम परिवर्तनशील है।
अलग-अलग आर्थिक परिस्थितियों में सोने की माँग अपरिवर्तित है। जब अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही होती है, तो लोग आभूषण और तकनीकी उपकरणों जैसी विवेकाधीन खरीदारी ज्यादा करते हैं, जिससे कि सोने की मांग बढ़ जाती है। लेकिन जब अर्थव्यवस्था में मंदी छाई होती है, जब निवेशक बाजार के घाटे की भरपाई के लिए कोई भरोसेमंद, तरल संपत्ति चाहते हैं, तो सोने की मांग (और फलस्वरूप इसकी कीमत भी) बढ़ जाती है।
सोने के प्रमुख अवसरों में से एक भारत के मध्यम वर्ग का तेजी से उभार है। पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (प्राइस) का अनुमान है कि 2018 में मध्यम वर्ग भारत की कुल आबादी का 19% से बढ़कर 2048 तक 73% हो जाएगा। चूंकि आय में प्रत्येक 1% की वृद्धि के साथ सोने की मांग भी 1% बढ़ जाती है, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि सोने की मांग का बढ़ना तो तय ही है।
जहां, निस्संदेह सोने के अलावा अन्य वस्तुओं में बहुत उपयोगी विशेषताएं हैं, जो उन्हें व्यक्तिगत और संस्थागत, दोनों तरह के निवेशकों के पोर्टफोलियो बहुरूपता के लिए महत्वपूर्ण बना देती हैं, वहीं सोने ने अन्य वस्तुओं और परिसंपत्तियों की तुलना में अपने गतिशील परस्पर संबंधों के कारण इन वस्तुओं से बेहतर प्रदर्शन किया है, क्योंकि यह जोखिम-भरे समय में निवेशकों के लिए एक बहुत ही सुरक्षित निवेश है।