Published: 12 सितंबर 2017
ज़कात : स्वर्ण भेंट करना
"सच्ची नेकी तो उसकी है जिसने अल्लाह में, और अंतिम दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाया, और माल के प्रति प्रेम के बावजूद, नातेदारों, अनाथों, मुहताजों, मुसाफ़िरों, मांगने वालों को दिया, और दासों को छुडाने में, नमाज़ अदा करने में और ज़कात में दिया." (कुरआन 2:177)
मुस्लिम जगत के एक प्रिये किस्से में एक फ़ारसी शाह की चर्चा है जिसकी मुलाक़ात जैतून का पेड़ लगाते हुए एक बूढ़े आदमी से अचानक हुयी थी. सम्पूर्ण देश में यह ज्ञात था कि जैतून के पेड़ पर उत्तम फल आने में दशकों लग जाते हैं. शाह ने जब पूछा कि पेड़ का फल तो उसे मिलेगा नहीं, फिर वह इसे क्यों रोप रहा है, तब बूढ़े आदमी ने जवाब दिया, “मेरे पूर्वजों ने पेड़ लगाया, और हमें उसका फल मिला. मैं पेड़ इसलिए लगा रहा हूँ क्योंकि मेरे बाद की पीढी को इसका फल मिलेगा.”
कुरआन के अनुसार, नमाज़ के बाद ज़कात दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कर्म है और यह इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है. ज़कात में एक चन्द्र वर्ष में संचित कुल बचत का 2.5% परोपकार के लिए दान किया जाता है. यह बचत अक्सर स्वर्ण या स्वर्ण आभूषण के रूप में होतीं हैं.
जहां तक पैगम्बर मुहम्मद के वारिसों द्वारा स्थापित वैधानिक ज़कात व्यवस्था की बात है, तो इसमें स्वर्ण को भविष्य के लिए निवेश माना जाता है, और इस प्रकार सालाना ज़कात का हिसाब लगाते समय इसे शामिल करना ज़रूरी होता है. तथापि, यूनाईटेड किंगडम स्थित इस्लामी परोपकारी गैर सरकारी संगठन, मुस्लिम एड के अनुसार निजी इस्तेमाल के स्वर्ण आभूषण का कोई नियम नहीं होता. उनका कहना है कि किसी के स्वर्ण आभूषण ज़कात लायक हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस दर्शन का अनुयायी है. इस्लाम में अधिकाँश मतों का हुक्म है कि तमाम तरह के स्वर्ण आभूषण ज़कात से मुक्त हैं, लेकिन हनफ़ी मज़हब के अनुयायियों के लिए स्वर्ण आभूषण एक निवेश माना जाता है और इस पर ज़कात अदा करना होगा.
आयरलैंड के कवि, ओलिवर गोल्डस्मिथ ने कहा था : “जहां धन का संचय होता है, वहाँ मनुष्य का पतन होता है.” ज़कात का शाब्दिक अर्थ है “शुद्धि करने वाला”. दान किये गए स्वर्ण और अन्य उपहारों से न केवल व्यक्ति के धन की शुद्धि होती है, बल्कि इस्लाम में इसे एक आध्यात्मिक शुद्धि भी माना गया है जो अल्लाह के और करीब होने के साधन का काम करता है. इस प्रकार, एक नैतिक उत्तरदायित्व के अलावा, ज़कात को एक धार्मिक उत्तरदायित्व भी कहा जा सकता है, जो आदमी की आत्मा को इच्छा से आज़ाद करता है और यह याद दिलाता है कि हम जो कमाते है, या हमारे पास जो है, वह असल में हमारा नहीं है, बल्कि अल्लाह की नेमत है.